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Category: दस भक्ति संग्रह

Home जिनेन्द्र भक्ति Archive by Category "दस भक्ति संग्रह"

श्रुतभक्ति- संस्कृत!

March 31, 2014jambudweepSanskrit Bhakti

श्रुतभक्ति आर्या छंद स्तोष्ये संज्ञानानि, परोक्षप्रत्यक्षभेदभिन्नानि। लोकालोकविलोकनलोलितसल्लोकलोचनानि सदा।।१।। अभिमुखनियमितबोधनमाभिनिबोधिकमिंनद्रियेंद्रियजं। बह्वाद्यवग्र्हादिककृतषट्त्रिंशत्त्रिशतभेदम् ।।२।। विविधर्द्धिबुद्धिकोष्ठस्फुटबीजपदानुसारिबुद्ध्यधिकं। संभिन्नश्रोतृतया सार्धं श्रुतभाजनं वंदे।।३।। श्रुतमपि जिनवरविहितं, गणधररचितं द्व्यनेकभेदस्थम्। अंगांगबाह्यभावितमनंतविषयं नमस्यामि ।।४।। पर्यायाक्षरपदसंघातप्रतिपत्तिकानुयोगविधीन् । प्राभृतकप्राभृतक्, प्राभृतक् वस्तु पूर्वं च।।५।। तेषां समासतोऽपि च, विंशतिभेदान् समश्नुवानं तत्। वंदे द्वादशधोक्तं, गभीरवर – शास्त्रपद्धत्या।।६।। आचारं सूत्रकृतं, स्थानं समवायनामधेयं । व्याख्याप्रज्ञिंप्त च, ज्ञातृकथोपासकाध्ययने।।७।। वंदेंऽतकृद्दशमनुत्तरोपपादिकदशं दशावस्थम् । प्रश्नव्याकरणं हि, विपाकसूत्रं…

शांतिभक्ति!

March 31, 2014jambudweepSanskrit Bhakti

शांतिभक्ति न स्नेहाच्छरणं प्रयान्ति भगवन् ! पादद्वयं ते प्रजाः। हेतुस्तत्र विचित्रदुःखनिचयः, संसारघोरार्णवः।। अत्यन्तस्पुरदुग्ररश्मिनिकर-व्याकीर्णभूमण्डलो। ग्रैैष्मः कारयतीन्दुपादसलिल-च्छायानुरागं रविः।।१।। क्रुद्धाशीर्विषदष्टदुर्जयविषज्वालावलीविक्रमो। विद्याभेषजमन्त्रतोयहवनैर्याति प्रशांतिं यथा।। तद्वत्ते चरणारुणांबुजयुग-स्तोत्रोन्मुखानां नृणाम्। विघ्नाः कायविनायकाश्च सहसा, शाम्यन्त्यहो! विस्मयः।।२।। संतप्तोत्तमकांचनक्षितिधरश्रीस्पद्र्धिगौरद्युते। पुंसां त्वच्चरणप्रणामकरणात्, पीडाः प्रयान्ति क्षयं।। उद्यद्भास्करविस्फुरत्करशतव्याघातनिष्कासिता। नानादेहिविलोचनद्युतिहरा, शीघ्रं यथा शर्वरी।।३।। त्रैलोक्येश्वरभंगलब्धविजयादत्यन्तरौद्रात्मकान् । नानाजन्मशतान्तरेषु पुरतो, जीवस्य संसारिणः।। को वा प्रस्खलतीह केन विधिना, कालोग्रदावानला- न्नस्याच्चेत्तव पादपद्मयुगलस्तुत्यापगावारणम्।।४।। लोकालोकनिरन्तरप्रविततज्ञानैकमूर्ते! विभो!।…

लघु पंचगुरुभक्ति!

March 30, 2014jambudweepDash Bhakti Padyaanuwad

लघु पंचगुरुभक्ति प्रातिहार्य से युत अरिहंतों, को अठगुण युत सिद्धों को। वंदूँ अठ प्रवचनमाता से, संयुत श्री आचार्यों को।। शिष्यों से युत पाठकगण को, अष्ट योग युत साधू को। वंदूँ पंचमहागुरुवर को, त्रिकरण शुचि से मुद मन हो।। अंचलिका दोहा भगवन् ! पंचमहागुरु, भक्ति कायोत्सर्ग। करके आलोचन विधि, करना चाहूँ सर्व।।१।। अष्टमहाशुभ प्रातिहार्य, संयुत अरिहंत…

लघु चारित्रभक्ति!

March 30, 2014jambudweepDash Bhakti Padyaanuwad

लघु चारित्रभक्ति व्रतसमुदयमूलः संयमस्कन्धबन्धो यमनियमपयोभिर्वर्धितः शीलशाखः। समितिकलिकभारो गुप्तिगुप्तप्रवालो गुणकुसुमसुगन्धिः सत्तपश्चित्रपत्रः।।१।। शिवसुखफलदायी यो दयाछाययौद्घः शुभजनपथिकानां खेदनोदे समर्थः। दुरितरविजतापं प्रापयन्नन्तभावं स भवविभवहान्यै नोऽस्तु चारित्रवृक्षः।।२।। चारित्रं सर्वजिनैश्चरितं प्रोक्तं च सर्वशिष्येभ्यः। प्रणमामि पंचभेदं पंचमचारित्रलाभाय।।३।। धर्मः सर्वसुखाकरो हितकरो धर्मं बुधाश्चिन्वते। धर्मेणैव समाप्यते शिवसुखं धर्माय तस्मै नमः।। धर्मान्नास्त्यपरःसुहृद्भवभृतां धर्मस्य मूलं दया। धर्मे चित्तमहं दधे प्रतिदिनं हे धर्म! मां पालय।।४।। धम्मो मंगलमुक्किट्ठं…

लघु शांतिभक्ति!

March 30, 2014jambudweepSanskrit Bhakti

लघु शांतिभक्ति – १ श्रीमत्पंचम – सार्वभौमपदवीं प्रद्युम्नरूपश्रियं। प्राप्तः षोडश तीर्थकृत्वमखिलं त्रैलोक्यपूजास्पदं।। यस्तापत्रयशांतितः स्वयमितः शान्ति प्रशांतात्मनाम्। शांतिं यच्छति तं नमामि परमं शांतिं जिनं शांतये।। अंचलिका इच्छामि भंते! शांतिभत्तिकाउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं पंचमहाकल्लाण-संपण्णाणं अट्ठमहापाडिहेरसहियाणं, चउतीसातिसयविसेस-संजुत्ताणं, बत्तीस-देविंदमणिमयमउडमत्थयमहियाणं बलदेववासुदेवचक्कहर-रिसि-मुणिजदि-अणगारोवगूढाणं, थुइसयसहस्सणिलयाणं, उसहाइवीरपच्छिम-मंगलमहापुरिसाणं णिच्चकालं अंचेमि पूजेमि वंदामि णमंसामि दुक्खक्खओ कम्मक्खओ बोहिलाओ सुगइगमणं समाहिमरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं। लघु शांतिभक्ति – २ श्रीमत्…

लघु श्रुतभक्ति!

March 30, 2014jambudweepDash Bhakti Padyaanuwad

लघु श्रुतभक्ति – १ जिनवर कथित, रचित गणधर से, श्रुत अंगांग बाह्य संयुत। द्वादशभेद अनेक अनन्त, विषययुत वंदूँ मैं जिनश्रुत।। अंचलिका हे भगवन् ! श्रुतभक्ती कायोत्सर्ग किया उसके हेतू। आलोचना करना चाहूँ जो अंगोपांग प्रकीर्णक श्रुत।। प्राभृतकं परिकर्म सूत्र प्रथमानुयोग पूर्वादीगत। पंच चूलिका सूत्र स्तव स्तुति अरु धर्मकथादि सहित।। सर्वकाल मैं अर्चूं पूजूँ, वंदूँ नमूँ…

लघु निर्वाणभक्ति!

March 30, 2014jambudweepSanskrit Bhakti

लघु निर्वाणभक्ति   यत्रार्हतां गणभृतां श्रुतपारगाणां, निर्वाणभूमिरिह भारतवर्षजानाम् । तामद्य शुद्धमनसा क्रियया वचोभिः, संस्तोतु-मुद्यतमतिः परिणौमि भक्त्या।।१।। इच्छामि भंत्ते! परिणिव्वाणभत्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेउं! इमम्मि अवसप्पिणीये चउत्थसमयस्स पच्छिमे भाये। आउट्ठमासहीणे वासचउक्कम्मि सेसकालम्मि। पावाये णयरीए कत्तियमासस्स किण्हचउद्दसिए रत्तीए सादीए णक्खत्ते पच्चूसे भयवदो महदि महावीरो वड्ढमाणो सिद्धिं गदो। तिसुवि लोएसु भवणवासियवाणविंतरजोयिसियकप्पवासियंत्ति चउव्विहा देवा सपरिवारा दिव्वेण गंधेण, दिव्वेण पुप्फेण, दिव्वेण…

लघु योगिभक्ति!

March 30, 2014jambudweepDash Bhakti Padyaanuwad

लघु योगिभक्ति बिजली चमके अतिजल वर्षे, वर्षा में तरुतल बैठें। शीतकाल रात्री में निर्भय, काष्ठसदृश निर्मम तिष्ठें।। गर्मी में रविकिरण तप्तगिरि, शिखरों पर निजध्यान धरें। शिवपथ पथिक साधुपुंगव वे, मुझको धर्म प्रदान करें।।१।। ग्रीष्मऋतू में पर्वत ऊपर, वर्षा में तरु के नीचे। शीतकाल में बाहर सोते, उन मुनि को वंदूँ रुचि से।।२।। पर्वत कंदर दुर्गों…

लघु सिद्धभक्ति!

March 30, 2014jambudweepDash Bhakti Padyaanuwad

लघु सिद्धभक्ति – १ समकित दर्शनज्ञान वीर्य, सूक्ष्मत्व तथा अवगाहन हैं। अव्याबाध अगुरुलघु ये, सिद्धों के आठ महागुण हैं।।१।। तप से सिद्ध नयों से सिद्ध, सुसंयमसिद्ध चरित सिद्धा। ज्ञान सिद्ध दर्शन से सिद्ध, नमूँ सब सिद्धों को शिरसा।।२।। अंचलिका हे भगवन् ! श्री सिद्धभक्ति का, कायोत्सर्ग किया उसका। आलोचन करना चाहूँ जो, सम्यग् रत्नत्रय युक्ता।।१।।…

लघु चैत्यभक्ति!

March 30, 2014jambudweepDash Bhakti Padyaanuwad

लघु चैत्यभक्ति – १ नव सौ पचीस कोटि त्रेपन, लाख सताइस सहस प्रमाण। नव सौ अड़तालिस जिन प्रतिमा, त्रिभुवन में हैं करूं प्रणाम।। ज्योतिष व्यंतर के गृह में, शाश्वत जिनप्रतिमा संख्यातीत। पंच शतक धनु तुंग पूर्वमुख, पर्यंकासन वंदूँ नित्य।।१।। अंचलिका भगवन् ! चैत्यभक्ति अरु कायोत्सर्ग किया उसमें जो दोष। उनकी आलोचन करने को, इच्छुक हूँ…

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