भाव अशुध्द आहार!
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भाव अशुध्द आहार – Bhava Asuddha Ahara. A fault related to saint – food . १६ उदगम दोषों से युक्त आहार ” साधु यदि आहार संबंधी १६ उदगम दोषों में किसी प्रकार का विकल्प करता है तो वह भाव से उद्दिष्ट आहार है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भाव अशुध्द आहार – Bhava Asuddha Ahara. A fault related to saint – food . १६ उदगम दोषों से युक्त आहार ” साधु यदि आहार संबंधी १६ उदगम दोषों में किसी प्रकार का विकल्प करता है तो वह भाव से उद्दिष्ट आहार है “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वीतराग स्तोत्र –VitaragaStotra. Name of a Sanskrit spiritual hymn. एक आध्यात्मिक संस्क्रत स्तोत्र ” शिवं शुध्द बुध्दं …………. चिदानंद रूपं णमो वितरागं “
गुणश्रेणी निर्जरा Multiple progression dissociation. जब कर्मों की निर्जरा प्रतिसमय क्रमशः असंख्यात गुणी संख्यात हो तो इसे गुणश्रेणी निर्जरा कहते हैं।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] व्यंतरदेव –Vyaintaradeva. Peripatetic deities ( Bhoot, Pishach etc.). किन्नर, किम्पुरुष, महोरग, गंधर्व, यक्ष, राक्षस, भुत और पिशाच ये ८ प्रकार के व्यंतर देव कहलाते हैं ” ये वैकिर्यिक शरीर के धारी होते हैं एवं इनके असंख्य भवनों में जिनमंदिर होते हैं “
खंडनखंडखाद्य A book written by ‘Shri Harsh’. वेदान्त साहित्य प्रवर्तक ‘श्री हर्ष ‘द्वारा रचित एक ग्रन्थ ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी : शब्दकोष]] बोधायन – Bodhayana. Name of a commentator of Vedant literature. बादरायण के ब्रम्हसूत्र पर टीका लिखने वाले एक वेदांत साहित्य प्ररर्तक “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भाव सामायिक – Bhava Samayika. Equanimity in pain & pleasure. सुख – दुःख में साम्यभाव धारण कर मैत्रीभाव के साथ सम्पूर्ण सावध से निर्वत्त ह्नुं, इन भावों के साथ सामायिक करना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भूमिशय्याव्रत – Bhumishayyavrata. A basic restraint of Jaina saints, to sleep on the earth. साधु के २८ मूलगुणों में एक मूलगुण; पृथिवी पर शयन करना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] मनोहर- Manohara. Beautiful, alluring, pleasing, A type of peripatetic deities, Name of initiation – forests of Lord Padmaprabh, Shreyansnath and Vasupujya. मनकोमोहितकरनेवाला , महोरगजातिकाएकव्यंतरदेव , एकवनजहाँतीर्थंकरपदमप्रभ, श्रेयांसनाथ , वासुपूज्यनेदीक्षालीथी “
[[श्रेणी: शब्दकोष]] भोक्त्रत्व नय:A viewpoint believing that soul is the enjoyer of joy & sorrow. नय; जिसकी अपेक्षा से आत्मद्रव्य सुख-दुखादि का भोक्ताहै “