ईप्सित!
ईप्सित Desired by the heart. मनवांछित।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संधान – Sandhaana. Pickles, Jam (non-edible according to Jain philosophy). अचार व मुरब्बा ” त्रस जीवों से संसिक्त होने से ये अभक्ष्य हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विभाव गुण व्यंजन पर्याय – Vibhava Guna Vyamjana Paryaya. Sensory knowledge, scriptural knowledge etc. are called as vibhava Guna Vyanjana paryaya of Jivas (souls). मतिज्ञान, श्रुतज्ञान आदि जीव की विभाव गुण व्यंजन पर्यायें हैं “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वयंभू – Svayammbhuu. Name of the 19th predestined Jaina Lord, The first chief disciple of lord Kunthunath, Lord Parshvanath, The main Listener in the assembly of Lord Vasupujya. भावीकालीन 19 वे तीर्थकर, तीर्थकर कुंथ्ुानाथ व पाश्र्वनाथ के प्रथम गणधर, तीर्थकर वासुपूज्य के मुख्य श्रोता।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लघुशंका – मूत्रोत्सर्ग, लघु व दीर्घ षंका जाने के बाद प्रायष्चित के रूप 25 उच्छ्वास का कायोत्सर्ग किया जाता है। Laghusamka-Urination
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == क्षीणकषाय : == विशेषक्षीणमोह:, स्फटिकामल—भाजनोदक—समचित्त:। क्षीणकषायो भण्यते, निग्र्रंथो वीतरागै:।। —समणसुत्त : ५६१ सम्पूर्ण मोह पूरी तरह नष्ट हो जाने से जिनका चित्त स्फटिकमणि के पात्र में रखे हुए स्वच्छ जल की तरह निर्मल हो जाता है, उन्हें वीतराग देव ने क्षीणकषाय निग्र्रन्थ कहा है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रइधू – पउम चरिउ, जसहर चरिउ, धण्णकुमार चरिउ, दष लक्षण धर्म, दस स्तुतियां आदि के रचियता एक अपभ्रंष कवि। समय – वि 1457 – 1536, दस लक्षण धर्म दस स्तुतियां। Raidhu-Name of an Apabhransh Jainapoet
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == ज्ञानी-अज्ञानी : == सेवंतो वि ण सेवइ, असेवमाणो वि सेवगो कोई। —समयसार : १९७ ज्ञानी आत्मा (अंतर में रागादि का अभाव होने के कारण) विषयों का सेवन करता हुआ भी सेवन नहीं करता। अज्ञानी आत्मा (अंतर में रागादि का भाव होने के कारण) विषयों का सेवन नहीं करता…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लाडबांगड संघ – जैन मूल संध से निकले काठासंघ के चार भेदो में अन्तिम भेद, एक जैनाभासी संघ। Larabagara Samgha-One of the four former parts of Kashtha group of saints