स्थापना!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थापना -Sthaapanaa. Installation, establishment, positioning.धारण, स्थापना, कोष्ठा, प्रतिष्ठा एकार्थवाची है। जिसके द्वारा निर्णीत रुप से अर्थ स्थापित किया जाता है। वह स्थापना है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्थापना -Sthaapanaa. Installation, establishment, positioning.धारण, स्थापना, कोष्ठा, प्रतिष्ठा एकार्थवाची है। जिसके द्वारा निर्णीत रुप से अर्थ स्थापित किया जाता है। वह स्थापना है।
गुणवृद्धि Increasing series (in properties). गुणाकार रूप अधिक अधिक द्रव्य जिसमें पाया जाए ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चलनी A type of listener who grasp meaningless thoughts. श्रोता का एक भेद ; सारभूत तत्त्व को छोड़कर जो निस्सार तत्व को ग्रहण करे ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सम्यक् नय – Samyak Naya. A standpoint believing in righteousness सुनय। सम्यक् एकांत को सम्यक् नय और मिथ्या एकांत को नयाभास या मिथ्यानय कहते है।
गतिभ्रमण काल Wandering period of five sensed beings (reg. body forms). पंचेंद्रियों में कुल परिभ्रमणकाल पूर्वकोटि प्रथक्त्व अधिक १००० सागर प्रमाण हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चुगलखोर One who deals in slander, A sycophant, A backbiter. दूसरों की शिकायत या चुगली करने वाला ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्त्रीवेद – Striiveda. Femininity (pertaining to sex).जिसके उदय से जीव स्त्री सम्बन्धी भावो को प्राप्त होता है वह स्त्री वेद है, अथवा जिन कर्म स्कन्धो के उदय से पुरुष मे आकांक्षा उत्पन्न है, उन कर्म स्कन्धो को स्त्रीवेद यह संबा है अथवा जिसके उदय से पुरुष मे रमने के भाव हो वह स्त्रीवेद है।
गणपोषण काल Nurturing period of disciples under Acharyas. दीक्षादी ६ कालों का एक भेद; आचार्य का निश्चय व्यवहार काल में स्थित होक्जर शिष्यागणों का पोषण करना ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मुखशुद्धि मुक्त्करण विधि–Mukhashuddhi Muktkaran Viddhi. The process of abandoning the cleaning of mouth & teeth before taking food for a newly initiated Digambar Jain ascetic. भोजन से पूर्व की जाने वाली मुखशुद्धि (मंजन आदि से) का दीक्षा के पश्चात् सदैव के लिए त्याग करने की एक विशेष विधि;दीक्षावाले दिन दीक्षार्थी का पूर्ण उपवास…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्त्यानत्रिक – Styanatrika. A triplet of karmic nature related to sleepiness.स्त्यानगृद्वि, निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला ये तीन कर्म प्रकृतियाॅ स्त्यानत्रिक कहलाती है।