प्रवचनमाता :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:सूक्तियां ]] == प्रवचनमाता : == ईर्याभाषैषणाऽऽदाने—उच्चारे समितय इति। मनोगुप्तिर्वचोगुप्ति:, कायगुप्तिश्चाष्टमी।। एता अष्ट प्रवचनमातर: ज्ञानदर्शनचारित्राणि। रक्षन्ति सदा मुनीन्, मातर: पुत्रमिव प्रयता:।। —समणसुत्त : ३८४-३८५ ईर्या, भाषा, एषणा, आदान—निक्षेपण और उच्चार (मल—मूत्रादि विसर्जन)—ये पांच समितियाँ हैं। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति—ये तीन गुप्तियाँ हैं। ये पाठ प्रवचनमाताएं हैं। जैसे सावधान माता पुत्र का…