स्वसमय प्रवृत्ति!
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वसमय प्रवृत्ति – Svasamaya Pravrtti. Engrossment into self. स्वरुप मे चरण करना चारित्र है, स्वसमय मे प्रवृत्ति करना इसका अर्थ है। देखे-स्वसमय।
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वसमय प्रवृत्ति – Svasamaya Pravrtti. Engrossment into self. स्वरुप मे चरण करना चारित्र है, स्वसमय मे प्रवृत्ति करना इसका अर्थ है। देखे-स्वसमय।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पद्मनंदि: Name of the disciple of Acharya Shri Kunthusagar Maharaj and many other Digamber Jain Acharyas. आचार्यश्री कुंथुसागर जी महाराज के एक प्रसिद्ध षिष्य ( ई0 श0 20-21) । इस नाम से दिगम्बर जैन आम्नाय में अनेको आचर्य हुए है। आचार्य कुंदकुद स्वामी को भी पदमनंदि नाम से जाना जाता है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == जिनवाणी : == जिनवचनमौषधमिदं, विषयसुखविरेचनम् अमृतभूतम्। जरामरणव्याधिहरणं, क्षयकरणं सर्वदु:खानाम्।। —समणसुत्त : १८ जिनवाणी वह अमृत समान औषधि है, जो विषय—सुखों का विरेचन करती है, जरा व मरण की व्याधि को दूर करती है और सभी दु:खों का क्षय करती है। लब्धमलब्धपूव, जिनवचन—सुभाषितं अमृतभूतम्। गृहीत: सुगतिमार्गो, नाहं मरणाद् बिभेमि।।…
[[श्रेणी: शब्दकोष]] स्वर्णनाभ – Svarnanaabha. Name of the 17th city in the south of Vijayardha mountain, name of a king of Arishtapur. विजयार्ध की दक्षिण श्रेणी का 17वां नगर, अस्ष्टिपुर नगर का राजा। कृष्ण की रानी पद्यावती का पिता।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == तीर्थ : == रत्नत्रयसंयुक्त: जीव: अपि, भवति उत्तमं तीर्थम्। संसारं तरति यत:, रत्नत्रयदिव्यनावा।। —समणसुत्त : ५१४ (वास्तव में) रत्नत्रय से सम्पन्न जीव ही उत्तम तीर्थ (तट) है, क्योंकि वह रत्नत्रयरूपी दिव्य नौका द्वारा संसार—सागर को पार करता है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संध्या – Sandhyaa. Evening, Joining period of night-morning, morning-afternoon & evening-night (i.e. dawn, mid-joining & dusk). शाम ” प्रातः,मध्यान्ह,सायंकाल के संधिकालों को संध्या कहते हैं ” इन संधिकालों में वंदना एवं सामायिक की जाती है “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वरुप (देव) – Svaruupa (Deva). A type of peripatetic deities of Yaksh type, Name of an Indra of some peripatetic deities of Bhoot types. यक्ष जाति के व्यंतर देवो के 12 भेदो मे 10वां भेद, भूत जातिक के व्यंतर देवो का इन्द्र।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] वृक्षमूल –Vrksamula. Root of trees, A type of meditation to be observed under the tree. वृक्ष की जड़, एक प्रकार का योग, वर्षाकाल में वृक्ष के नीचे ध्यान लगाना, वृक्षमूल योग कहलाता हैं