लंगल!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लंगल – सनत्कुमार स्वर्ग का 5 वां पटल या इन्द्रक, बलभद्र राम का एक हल रत्न। Lamgala-The 5th patal (Layer) of Sanat Kumar heaven, Name of a plough-a jewel of Lord Ram
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लंगल – सनत्कुमार स्वर्ग का 5 वां पटल या इन्द्रक, बलभद्र राम का एक हल रत्न। Lamgala-The 5th patal (Layer) of Sanat Kumar heaven, Name of a plough-a jewel of Lord Ram
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सुरेन्द्रकीति – Surendrakaanta. Name of the 21st city in the north of Vijayardha mountain. नंदिसंघ बलात्कारगण चित्तौड गद्दी के एक भट्टारक नरेन्द्रकीर्ति के षिष्य । समय – वि0 सं0 1722 ।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] निरंतर – Nirantara. Continuous, constant. नित्य, लगातार होने वाला, सतत, अविच्छिन्न, सदा बना रहने वाला “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सकल परमात्मा – Sakala Parmaatmaa. The supreme soul with body (devoid of all Karmas). घातिया कर्मों से रहित परमौदारिक शरीर में स्थित अर्हन्त परमात्मा
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पार्श्वकृष्टि – Parsvakrsti. A type of Krishtics (gradual destruction of passions). पहले समय में की गई कृष्टि के समान ही अनुभाग लिये जो नवीन कृष्टि द्वितीयादि समयों में की जाती है, पूर्व कृष्टि के पार्श्व में ही उनका स्थान होने से वह पार्श्व कृष्टि कहलाती हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सत्पात्र – Satpaatra. Reverential persons (perfect to get donation). जिनको दान दिया जाता है, ऐसे सत्पात्र, कुपात्र, अपात्र रूप तीन पात्रों में से एक ” सत्पात्र के तीन भेद हैं- 1. उत्तम सत्पात्र- नग्न दिगम्बर साधु, 2. मध्यम सत्पात्र- आर्यिका, क्षुल्लक, ऐलक तथा प्रतिमाधारी श्रावक, 3. जघन्य सत्पात्र- व्रत रहित सम्यग्दृष्टि श्रावक “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सुमतिसागर (आचार्य) – Sumatisaagara (Aachaarya). Name of Digambar Acharya of 20th Century of the tradition of Aacharya Shantisagar (Chhani). आचार्य श्री शांतिसागर जी छाणी (राज0) की परम्परा में हुए एक आचार्य (समय ई0 20 वीं शताब्दी) ।ये तेरह पंथ आम्नाय के कट्टर समर्थक हुए है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पारलौकिक भय – Parlaukika Bhaya. Fear regarding the next birth (fear of next world). ७ भयों में एक भय; मेरा दुर्गति में जन्म न हो इत्यादी प्रकार से ह्रदय का आकुलित होना “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लेश्या – Leshya.: Karmic stain , Aura , colouration. कषाय से अनुरंजित जीव की मन वचन काय की या जो आत्मा को शुभाशुभ कर्मों से लिप्त करे ” कृष्ण , नील , कपोत , पीत ,पद्य , शुक्ल इसके ये 6 भेद है “