चमत्कार!
चमत्कार Amazement, Astonishment, Splendour, Supernatural events. विस्मय , आश्र्चय, उत्कर्ष , लोकमूढ़ता; लौकिक चमत्कारों के प्रति आकर्षित होना सम्यग्दर्शन का एक दोष है ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
चमत्कार Amazement, Astonishment, Splendour, Supernatural events. विस्मय , आश्र्चय, उत्कर्ष , लोकमूढ़ता; लौकिक चमत्कारों के प्रति आकर्षित होना सम्यग्दर्शन का एक दोष है ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] शैलेशी अवस्था – Shaileshee Avasthaa. Motionless state, state of absolute meditation.. पत्थर की मूर्ती के समान निश्छल ध्यानावस्था ” वन में इस प्रकार के ध्यानी मुनियों के शरीर से हिरण आदि पशु उन्हें पत्थर समझकर उनसे अपने शरीर को रगड़कर अपनी खाज मिटाते हैं ” अंतिम शुक्लध्यान की अवस्था “
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वर्णकूला नदी – Svarnakuulaa Nadii. Name of a river of Hairanyavata region. हैरण्यवत क्षेत्र की एक नदी। यह 14 महानदियो मे 11वीं महानदी है एवं पुण्डरीक सरोवर से निकलती है।
चंद्रगुप्त A king of Maurya empire. चंद्रगुप्त मौर्य(ई.पू. ३२२-२९८); मौर्य साम्राज्य के संस्थापक, भद्रबाहु श्रुतकेवली के शिष्य, जैनत्व दीक्षा लेने वाले अंतिम सम्राट्।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मेखलापुर– Mekhalpur. A city in the southern Vijayardh mountain. विजयार्धकी दक्षिण श्रेणी का एक नगर”
[[श्रेणी: शब्दकोष]] स्वरुप – Svruupa. Own form or shape, nature. आकृति आकार लक्षण।
गोपसेन A disciple of Shantisen. शान्तिसेन के शिष्य और भावसेन के गुरु . समय-ई, ९४८ ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == संल्लेखना : == संलेखना च द्विविधा, अभ्यन्तरिका च बाह्या चैव। अभ्यन्तरिका कषाये, बाह्या भवति च शरीरे।। —समणसुत्त : ५७४ संल्लेखना दो प्रकार की है—आभ्यन्तर और बाह्य। कषायों को कृश करना आभ्यन्तर संल्लेखना है और शरीर को कृश करना बाह्य संल्लेखना है। कषायान् प्रतनून् कृत्वा, अल्पाहार: तितिक्षते। अथ भिक्षुग्र्लायेत्…
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वरकीर्ति – Svarakiirti. Name of a Bhattarak of Nandi group. न्ंदिसंध बलात्कार गण की भट्ठारक, आम्नाय वारां की गट्ठी के भट्ठारक (समय वि.सं. 1167), अपरनाम सूरकीर्ति। ये भावनंदि के शिष्य तथा विद्याचन्द्र के गुरु थे।
गुरुस्थानाभ्युपगमन क्रिया An auspicious activity related to entrusting the responsibility of saint group to an able saint performed by the head Acharya (spiritual teacher) of the group. गर्भान्वय की ५३ क्रियाओं में एक क्रिया; प्रसन्नतापूर्वक शिष्य को योग्य समझकर गुरु अपने संह के आधिपत्य का गुरुपद प्रदान करें, तो उसे विनयपूर्वक स्वीकार करना ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]