स्वाधीन!
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वाधीन – Svaadhiina. Self dependent. स्वतंत्र, आत्माधीनं। सिद्वो का सुख संसार के विषयो से अतीत स्वाधीन अव्यय होता है।
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वाधीन – Svaadhiina. Self dependent. स्वतंत्र, आत्माधीनं। सिद्वो का सुख संसार के विषयो से अतीत स्वाधीन अव्यय होता है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सांसारिक सुख – Saansaarika Sukha. Worldly sensual pleasures. लौकिक या इन्द्रियजन्य सुख। यह सारा इन्द्रिय विषयक माना जाता है इसलिए यह केवल सुखाभास ही नही, किन्तु निःसंदेह दुखरुप ही हैं।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सहानवस्था विरोध – Sahaanvasthaa Virodha. Mutual opposition in the different states of a matter. विरोध के तीन भेदों में एक भेद । यह विरोध एक वस्तु की क्रम से होने वाली दो प्र्यायों में होता है। नयी पर्याय उत्पन्न होती है तो पूर्व पर्याय नष्ट हो जाती है।
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[श्रेणी:शब्दकोष]] == चरित्त : == चारित्तं समभावो —पंचास्तिकाय : १०७ समभाव ही चारित्र है। असुहादो विणिवित्ती, सुहे पवित्ती य जाण चारित्तं। —द्रवसंग्रह : ४५ अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति करना—इसे ही चारित्र समझना चाहिए। थोवम्मि सिक्खिदे जिणइ, बहुसुदं जो चरित्तसंपुण्णो। जो पुण चरित्तहीणो, िंक तस्स सुदेण बहुएण।। —मूलाचार : १०-६…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रबंधनकाल- बंधते अर्थात एकत्व को प्राप्त होते हैं जिसमें उसे प्रबंधन कहते हैं प्रबंधन प्रबन्णन रुप जो काल है ह प्रबन्णनकाल कहलाता है। prabamdhanakala – period of organisation (organising)
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रवचनसार टीका- प्रवचनसार ग्रंथ पर 1. आचार्य अमृतचन्द्र (ई. 905-955) कृत एक संस्कृत टीका “तवप्रदीपिका”, 2. आचार्य जयसेन ( ई. 11-12 अथवा 12-13) कृत “तात्पर्यवृŸिा” संस्कृत टीका। PravacanasaraTika- A commentary book on ‘Pravachanasar’ written by acharyaAmritchandra
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भावार्थ दीपिका – Bhavartha Dipika. A commentary book written by Pandit Shivjit. पं. शिवजित (वि. १८१८) कृत भगवती आराधना की भाषा टीका “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पदक्षिणा वर्त- बाई ओर से दांई ओर घूमना, श्रद्धापूर्ण अभिवादन जो इस प्रका प्रदक्षिण द्वारा किया जाये। pradaksina varta – taking round of circumambulation.
उदीचीन Northern. उत्तर दिशा की ओर मुड़ा हुआ उत्तर दिशा से सम्बन्ध रखने वाला।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रमोद- मुख की प्रसन्नता आदि के द्वारा भीतर की भक्ति और अनुराग का व्यक्तहोना। यतियों के गुधें का विखर करके उनके गुधें में हर्श मानना यह प्रमोद भावना का लक्षण है। Pramoda- Joy, pleasure, delight