विनम्रता आज चारों और विघटन और अनुशासनहीनता का वातावरण दिखाई दे रहा है इस कारण से मनुष्य का आंतरिक विश्वास डगमगाने लगता है। भौतिकता की अंधी दौड़ में सम्मिलत हुए आज के युग के मनुष्य की दृष्टि अहंकारी हो गई है।मनुष्य ने विनम्रता का दामन छोड़ दिया है। आज मनुष्य को सभी साधन और सुख…
एक वृक्ष सात डालियाँ ‘‘एक वृक्ष सात डालियाँ’’ पुस्तक पूज्य आर्यिकारत्न श्री अभयमती माताजी की मौलिक कृति है। इसमें रत्नत्रयरूपी एक कल्पवृक्ष बनाकर उसमें सात डालियाँ निकाली हैं जो कि सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, अहिंसाणुव्रत, सत्याणुव्रत, अचौर्याणुव्रत, ब्रह्मचर्याणुव्रत एवं परिग्रहपरिमाणव्रत रूप बताई है। एक दीनानाथ नामक लकड़हारे के माध्यम से विषय वस्तु को सुन्दर अलंकार रूप में…
नकारना भी आना चाहिए पशुओं का मेला लगा हुआ था। अनेक बेचने वाले और अनेक खरीदने वाले। एक व्यक्ति ने सौदागर से अनेक पशु खरीदे। उस सौदागर के पास एक कुत्ता भी था। उसने कहा— ‘ आप ने अन्यान्य सारे पशु खरीद लिए, इस कुत्ते को क्यों छोड़ा ? आप इसे ले जाएं, यह बड़ा…
[[श्रेणी:कुन्दकुन्द_वाणी]] मुनिधर्म (सराग चारित्र) संकलनकर्त्री- गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी हिन्दी पद्यानुवादकर्त्री- आर्यिका चंदनामती बारह अनुप्रेक्षा अद् ध्रुवमसरणमेगत्त-मण्णसंसारलोगमसुचित्तं। आसवसंवर णिज्जर, धम्मं बोिंह च चितेज्जो।।।। (द्वादशानुप्रेक्षा गाथा-२) -शंभु छन्द- अध्रुव अशरण एकत्व और, अन्यत्व तथा संसार लोक। अशुचित्व तथा आश्रव संवर, निर्जरा धर्म अरु ज्ञान बोध।। इन द्वादश अनुप्रेक्षाओं का, चिंतन साधु जो करते हैं। उनकी आत्मा…
सभी पर्वत, नदी आदि के दोनों पाश्र्व भागों में वेदिकायें हैं साम्प्रतं पर्वतादिषु सर्वत्र वेदिका संख्यामाह- तिसदेक्कारससेले णउदीकुडे दहाण छव्वीसे। तावदिया मणिवेदी णदीसु सगमाणदो दुगुणा१।।७३१।। त्रिशतैकादशशैलेषु नवतिकुण्डेषु ह्रदानां षड्विंशतौ। तावन्त्यः मणिवेद्यः नदीषु स्वकमानतः द्विगुणाः।।७३१।। तिस। जम्बूद्वीपस्य त्रिशतैकादश ३११ शैलेषु तावन्त्यो मणिमयवेद्यः नवतिकुण्डेषु ९० तावन्त्यो मणिमयवेद्यः ह्रदानां षड्विंशतौ २६ तावन्त्यो मणिमयवेद्यः नदीषु स्वकीयप्रमाणतो द्विगुणा मणिमयवेद्यः स्युः।।…
श्रीमद् भागवत में भ० ऋशभदेव महर्शि वेद व्यास जी की सनातन वैदिक धर्म परम्परा मान्य प्रमाणित कृति में भगवान ऋशभदेव को आठवाँ अवतार निरूपित किया गया है। यथा – अश्ठमे मेरूदेव्यां तु नाभेर्जात उरुक्रम :। दर्षयन् वत्र्म धीराणां सर्वाश्रमनमस्कृतम्।। प्रथम स्कन्ध अ. 3/10 राजा नाभि के पत्नी मेरुदेवी (मरुदेवी) के गर्भ से ऋशभदेव के रूप…
[[श्रेणी:मध्यलोक_के_जिनमंदिर]] == नरलोक के अकृत्रिम जिनचैत्यालयों की संख्या अथ नरलोकजिनगृहाणि कुत्र कुत्र तिष्ठन्ति इत्युत्तेक़ आह— मंदरकुलवक्खारिसुमणुसुत्तररुप्पजंबुसालिसु। सीदी तीसं तु सयं चउ चउ सत्तरिसयं दुपणं।।५६२।। मन्दरकुलवक्षारेषु मानुषोत्तररूप्यजम्बूशाल्मलिषु। अशीतिः त्रिंशत् तु शतं चत्वारि चत्वारि सप्ततिशतं द्विपञ्च।।५६२।। मंदर। मन्दरेषु ५ कुलपर्वतेषु ३० वक्षारेषु १०० इष्वाकारेषु ४ मानुषोत्तरे १ विजयार्धेषु १७० जम्बूवृक्षेषु ५ शाल्मलीवृक्षेषु ५ यथासंख्यं जिनगृहाण्यशीति ८० त्रिंशत्…
सती द्रौपदी हस्तिनापुर में पांडवों का शासन चल रहा था। प्रजा के लोग दुर्योधन आदि कौरवों के दुव्र्यवहार को भी भुला चुके थे। उस सुखद प्रसंग में नारद ऋषि यत्र-तत्र विचरण करते हुए वहाँ पर आ गये। पाँचों पांडवों से मिलकर प्रसन्न हुए। पांडवों ने भी उनका बहुत ही आदर-सम्मान किया। अनन्तर नारदजी द्रौपदी के…