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०९०. सौधर्म आदि स्वर्गों में विमानों का वर्णन!

August 2, 2022Surbhi Jain

सौधर्म आदि स्वर्गों में विमानों का वर्णन                                                              सोहम्मादिचउक्के कमसो अवसेसछक्कजुगलेसु।                              …

आचार्य धरसेन एवं उनका जोणिपाहुड़ (योनिप्राभृत)!

December 8, 2020Lord ShantinathArhat Vachana

आचार्य धरसेन एवं उनका जोणिपाहुड़ (योनिप्राभृत) डॉ० अनुपम जैन सारांश जैन परम्परा के अत्यन्त प्राचीन सिद्धान्त ग्रंथ षट्खण्डागम को अपने उपदेश द्वारा सृजित कराने वाले, अंग एवं पूर्व साहित्य के एकदेश ज्ञाता आचार्य धरसेन की एकमात्र कृति योनिप्राभृत (जोणिपाहुड़) हैं। प्रस्तुत आलेख में आचार्य धरसेन एवं उनकी इस कृति का संक्षिप्त परिचय प्रस्तु है। यह…

सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में रासायनिक बंध व्यवस्था!

December 8, 2020Lord ShantinathArhat Vachana

सर्वार्थसिद्धि ग्रन्थ में रासायनिक बंध व्यवस्था -सरिता जैन – विजयनगर , इन्दौर ( म० प्र० ) सारांश आचार्य पूज्यपाद चौथी शताब्दी के प्रभावशाली दार्शनिक आचार्य हुए हैं। उन्होंने तत्त्वार्थसूत्र ग्रंथ पर सर्वाथसिद्धि शीर्षक अप्रतिम टीका का सृजन किया है। गद्य में लिखी गई यह मध्यम परिमाण की विशद् वृत्ति है। इस टीका में सूत्रानुसार सिद्धांत…

०२ – द्वितीय अध्याय!

September 12, 2020Lord ShantinathTatvaarth Sutra Pravachan

तत्त्वार्थ सूत्र प्रवचन   प्रवचन कर्त्री -आर्यिका चंदनामती माताजी मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृताम्। ज्ञातारं विश्वतत्त्वानां वन्दे तद्गुण लब्धये।। महानुभावों ! आज दशलक्षण पर्व का दूसरा दिन है, आज हम सब मार्दव धर्म की आराधना करेंगे। मार्दव का अर्थ है नम्रता। जैसे—जैसे हमारे भावों में नम्रता आएगी, विनय गुण प्रगट होगा,  हम अपनी वास्तविक पहचान करने…

द्वादश तप (मूलाचार ग्रन्थ से)!

August 31, 2020Lord Shantinath

द्वादशतप (मूलाचार ग्रन्थ से) दुविहा य तवाचारो बाहिर अब्भंतरो मुणेयव्वो। एक्कक्को विय छद्धा जधाकमं तं परूवेमो।।३४५।।   द्विप्रकारस्तप आचारस्तपोऽनुष्ठानं। बाह्यो बाह्यजनप्रकटः। अभ्यन्तरोऽभ्यन्तर-जनप्रकटः। एकैकोऽपि च बाह्याभ्यन्तरश्चैकैकः षोढा षड्प्रकारः यथाक्रमं क्रममनुल्लंघ्य प्ररूपयामि कथयिष्यामीति।।३४५।।   बाह्यं षड्भेदं नामोद्देशेन निरूपयन्नाह—अणसण अवमोदरियं रसपरिचाओ य वुत्तिपरिसंखा। कायस्स वि परितावो विवित्तसयणासणं छट्ठं।।३४६।।   अनशनं चतुर्विधाहारपरित्यागः। अवमौदर्यमतृप्तिभोजनं। रसानां परित्यागो रसपरित्यागः स्वाभिलषितस्निग्धमधुराम्लकटुकादिरसपरिहारः। वृत्तेः परिसंख्या…

१. प्रकृति प्रकरण!

June 25, 2020Lord ShantinathJeev Kaand Saar, Jeevkaand

प्रकृति प्रकरण “मंगलाचरण” पणमिय सिरसा णेमिं गुणरयणविभूसणं महावीरं। सम्मत्तरयणणिलयं पयडिसमुक्कित्तणं वोच्छं।।१।। प्रणम्य शिरसा नेमिं गुणरत्नविभूषणं महावीरम्। सम्यक् त्वरत्ननिलयं प्रकृतिसमुत्कीर्तंनं वक्ष्यामि।।१।। अर्थ—मैं नेमिचंद्र आचार्य, ज्ञानादिगुणरूपी रत्नों के आभूषणों को धारण करने वाले, मोक्षरूपी महालक्ष्मी को देने वाले, सम्यक्त्वरूपी रत्न के स्थान ऐसे श्रीनेमिनाथ तीर्थंकर को मस्तक नवा-प्रणाम कर, ज्ञानावरणादि कर्मों की मूल व उत्तर दोनों प्रकृतियों…

मधु: एक वैज्ञानिक अनुचिंतन!

June 11, 2020Lord ShantinathArhat Vachana

मधु एक वैज्ञानिक अनुचिंतन अजित जैन सारांश मधुसेवन को हिंसक मानते हुये जैनग्रन्थों में इसके त्याग को मूलगुणों के अन्तर्गत माना गया है। जिसको कतिपय वैज्ञानिक तथ्यों के द्वारा लेखक द्वारा प्रस्तुत किया जा चुका हैपरंतु उस आलेख के पश्चात् कई जैन विद्वानों द्वारा प्रमुख जैन पत्रिकाओं/पुस्तकों में मधुसेवन की अहिंसकता, उपादेयता प्रदर्शित की गयी…

कीट हत्या : कारण, प्रभाव तथा बचाव!

June 9, 2020Lord ShantinathArhat Vachana

कीट हत्या : कारण, प्रभाव तथा बचाव आज जबकि मनुष्य हिंसा के कुचक्र में फसकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो रहा है। तब हिंसक मनोवृत्ति से निवृत्ति के उपायों पर चिन्तन मनन की महती आवश्यकता महसूस होती है। वैसे तो पूरा पर्यावरण विज्ञान जैनधर्म की सूक्ष्मतम अहिंसा का समर्थक है फिर भी धर्म और विज्ञान के अन्तर्संबंधों पर…

01.धर्मोपदेशामृत-!

June 8, 2020Lord ShantinathPadamnadi Panchvinshatika

धर्मोपदेशामृत प्रथम ही धर्म कितने प्रकार का है इस बात को बतलाते हैं।   शार्दूलविक्रीडित छन्दधर्मो जीवदया गृहस्थशमिनोर्भेदाद्द्विधा च त्रयं रत्नानां परमं तथा दशविधोत्कृष्टक्षमादिस्तत:। मोहोद्भूतविकल्पजालरहिता वागङ्गसङ्गोज्झिता शुद्धानन्दमयात्मन: परिणतिर्धर्माख्यया गीयते।।७।।   अर्थ— समस्त जीवों पर दया करना इसी का नाम धर्म है अथवा एकदेश गृहस्थ का धर्म तथा सर्वदेश मुनियों का धर्म इस प्रकार उस धर्म…

०१ – प्रथम अध्याय!

June 8, 2020Lord ShantinathTatvaarth Sutra Pravachan

तत्त्वार्थ सूत्र प्रवचन ( प्रथम अध्याय ) प्रवचन कर्त्री -आर्यिका चंदनामती माताजी मंगलाचरण सिद्धेर्धाममहारिमोहहननं कीर्ते: परं मंदिरम्।मिथ्यात्वप्रतिपक्षमक्षयसुखं संशीतिविध्वंसनम्।।सर्वप्राणिहितं प्रभेन्दुभवनं सिद्धिप्रमालक्षणम्।संतश्चेतसि चिन्तयंतु सुधिय: श्रीवर्धमानं जिनम्।। भगवान् महावीर द्वारा प्रतिपादित सम्पूर्ण द्वादशांग के सार को अपने में समाहित किए हुए ग्रन्थराज तत्त्वार्थसूत्र अनेकान्त वाणी को प्रतिपादित करने वाला है इसीलिए उसे मोक्षशास्त्र भी कहा जाता है। इस…

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