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क्रोध कषाय!

July 15, 2018Lord ShantinathBaal Vikaas Part 1

जो आत्मा को कषे अर्थात् दु:ख दे या पराधीन करे उसे कषाय कहते हैं। कषाय के चार भेद हैं-क्रोध, मान, माया और लोभ।क्रोध गुस्से को कहते हैं। इससे दूसरों का बुरा होने से पहले अपना बुरा हो जाता है। कमठ ने अपने छोटे भाई मरुभूति की स्त्री से व्यभिचार किया। तब राजा ने उसे दण्ड…

कर्मसिद्धांत- नये परिपे्रक्ष्य में!

July 15, 2018Lord ShantinathKarma Siddhant

कर्मसिद्धांत- नये परिप्रेक्ष्य में डॉ. सुभाष चन्द्र जैन कर्म सिद्धान्त की चर्चा में कर्म शब्द का उपयोग दो विभिन्न प्रसंग में किया जाता है। प्राणी कर्म करते हैं और कर्म बांधते भी हैं। ‘करने’ वाले और ‘बंधने’ वाले कर्मों के अर्थ में अंतर हैं। दोनों तरह के कर्म, यानी ‘करने’ वाले और ‘बंधने’ वाले कर्म,…

० २ – विनयसम्पन्नता भावना!

July 13, 2018Lord ShantinathSolahkaran Bhavna

सोलह कारण भावना विनयसंपन्नता भावना ज्ञानादिषु तद्वत्सु चादर: कषायनिवृत्तिर्वा विनयसंपन्नता।।२।। मोक्षमार्ग के साधन सम्यग्ज्ञान आदि का और उसके साधनभूत गुरु आदिकों का यथायोग्य आदर-सत्कार करना अथवा कषायों को दूर करना यह विनय-संपन्नता है। और भी कहते हैं-‘‘अरिहंत आदि पंच परम गुरुओं की पूजा करने में कुशल, ज्ञान आदिकों में यथायोग्य भक्ति से युक्त, गुरु के…

क्या है बीस ?!

July 13, 2018Lord ShantinathMaths

क्या है बीस ? ०१. बीस प्ररुपणा— (१) गुणस्थान (२) जीवसमास (३) पर्याप्ति (४) प्राण (५) संज्ञा (६) उपयोग (७) गति (८) इंद्रिय (९) काय (१०) योग (११) वेद (१२) कषाय (१३)ज्ञान (१४) दर्शन (१५) संयम (१६) लेश्या (१७) भव्यत्व (१८) सम्यक्त्व (१९) संज्ञी (२०) आहार। ०२. पुद्गल के बीस गुण— स्पर्श ८— (१) रूखा…

पर्याप्ति (बाल विकास भाग ४)!

July 13, 2018Lord ShantinathBaal Vikaas Part 1

पर्याप्ति सुदर्शन-गुरुजी! आपने जीवसमास में पर्याप्त-अपर्याप्त बताया है, सो ये क्या है? अध्यापक-हाँ सुनो! जिस प्रकार से घर, घड़ा आदि पदार्थ पूर्ण (पूरे) बने हुए और अपूर्ण (अधूरे) ऐसे दो प्रकार से देखे जाते हैं उसी प्रकार से जीव भी पर्याप्ति नाम कर्म के उदय से पर्याप्त-पूर्ण और अपर्याप्ति नाम कर्म के उदय से अपर्याप्त-अपूर्ण…

12ब्रम्हचर्य रक्षावर्ती!

July 12, 2018Lord ShantinathPadamnadi Panchvinshatika

ब्रह्मचर्यरक्षावर्तीअधिकार शार्दूलविक्रीडित छंदभ्रूक्षेपेण जयंति ये रिपुकुलं लोकाधिपा: केचन द्राकतेषामपि येन वक्षसि दृढं रोप: समारोपित: । सोऽपि प्रोद्गतविक्रमस्मरभट: शान्तात्मभिर्लीलया यै: शास्त्रग्रहबर्जितैरपि जित: स्तेभ्यो यतिभ्यो नम: ।। अर्थ —संसार में कई एक ऐसे भी राजा हैं जो कि अपनी भ्रुकुटी के विक्षेप मात्र से ही वैरियों के समूह को जीत लेते हैं उन राजाओं के भी हृदय…

जैन कर्म सिद्धान्त-एक वैज्ञानिक दृष्टि!

July 12, 2018Lord ShantinathKarma Siddhant

जैन कर्म सिद्धान्त-एक वैज्ञानिक दृष्टि ‘सारांश कर्म सिद्धान्त जैनदर्शन की आधारशिला है। रसायन शास्त्र के विद्यार्थी सुधी लेखक ने कर्म की आधुनिक विज्ञान के कार्य से तुलना कर उसे वैज्ञानिक दृष्टि से समझाया है। इस लेख से कर्म बन्ध एवं निर्जरा की प्रक्रिया को सरलता से समझा जा सकता है।जो कुछ हम काम करते हैं,…

परोपकार-!

July 12, 2018Lord Shantinath

परोपकार यत्र-तत्र विचरण करते हुए श्रीरामचन्द्र, सीता और लक्ष्मण के साथ दशांगपुर नगर के समीप पहुँचते हैं। समीप के उद्यान में एक वृक्ष के नीचे बैठ गये। ऊजड़ होते हुए गाँव को देखकर लक्ष्मण ने पता लगाया और श्री रामचन्द्र से निवेदन किया। ‘‘देव! इस नगर के राजा वङ्काकर्ण ने यह प्रतिज्ञा ली हुई है…

प्रमाण का विशेष विवरण!

July 12, 2018Lord Shantinath

प्रमाण का विशेष विवरण (स्वस्ति श्री कर्मयोगी रवीन्द्रकीर्ति स्वामी जी) प्रमाणनयैरधिगम: प्रमाण और नयों के द्वारा ही सात तत्त्व नव पदार्थ आदि का ज्ञान होता है इसलिये सबसे पहले इन प्रमाण और नयों का लक्षण अच्छी तरह से समझ लेना चाहिये। ‘सम्यग्ज्ञानं प्रमाणं’ सूत्र के अनुसार सच्चे ज्ञान को प्रमाण कहते हैं। ‘‘मतिश्रुतावधि मन:पर्यय केवलानि…

परोक्ष-प्रमाण!

July 12, 2018Lord Shantinath

परोक्ष प्रमाण प्रमाणनयैरधिगम:।।१ प्रमाण और नयों के द्वारा जीवादि पदार्थों का बोध होता है। सम्यग्ज्ञान को प्रमाण कहते हैं। न्याय ग्रंथों में २‘अपने और अपूर्व अर्थ को निश्चय कराने वाला ज्ञान प्रमाण माना है।’ प्रमाण के दो भेद हैं-परोक्ष और प्रत्यक्ष। परोक्षप्रमाण-इन्द्रिय और मन के निमित्त से होने वाला ज्ञान परोक्ष है। उसके दो भेद…

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