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अहिंसा इतिहास के आलोक में!

June 5, 2020Lord ShantinathArhat Vachana

अहिंसा इतिहास के आलोक में महान् अहिंसक वीर का ही कर्तव्य हो सकता है—    वही उसे माफ कर सकता है। यह है अहिंसा की महानता, अहिंसा का शौर्य—जो मानव को अमर बना देता है। अत: जो अमर जीवन चाहते हैं वे अहिंसक बनें। अहिंसा में अमरता है और हिंसा में मरण। अहिंसा जयति सर्वथा।…

संज्ञा!

May 13, 2020Lord ShantinathBaal Vikaas Part 1

संज्ञा सुमित्र-पिताजी! आज मैंने मुनि महाराज जी के उपदेश में सुना है कि संसारी जीवों को चार संज्ञारूपी ज्वर चढ़ा हुआ है। सो ये संज्ञायें क्या हैं? पिताजी-बेटा! जिनसे संक्लेशित होकर और जिनके विषय का सेवन करके यह जीव दोनों जन्म में दु:ख उठाता है, उन्हें संज्ञा कहते हैं। ये चार हैं-आहार, भय, मैथुन और…

जम्बूद्वीप में क्या -क्या हैं!

May 4, 2020Lord Shantinath

जम्बूद्वीप णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणं, णमो आइरियाणं। णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं।।   अनादिसिद्ध अनंतानंत आकाश के मध्य में चौदह राजू ऊँचा, सर्वत्र सात राजू मोटा, तलभाग में पूर्व पश्चिम सात राजू चौड़ा, घटते हुए मध्य में एक राजू चौड़ा, पुन: बढ़ते हुए ब्रह्म स्वर्ग तक पांच राजू चौड़ा और आगे घटते-घटते सिद्धलोक के पास…

पर्युषण पर्व के लिए हमारी कोई तैयारी है?!

March 6, 2020Lord Shantinath

पर्युषण पर्व के लिए हमारी कोई तैयारी है ? अनेक वर्षों से हम सभी लोग पर्युषण महापर्व हमारी महान परम्परा अनुरूप मनाते चले आ रहे हैं। लेकिन परंपरा से हमारे जीवन में कोई परिवर्तन नहीं आ पा रहा है। यह भी सत्य है । क्रोध—मन— माया—लोभ—निरंतर जारी हैं व इन्हीं को निरंतर पुष्ट करने का…

02.दान का उपदेश!

January 22, 2020Lord ShantinathPadamnadi Panchvinshatika

दान का उपदेश वसंततिलका छंदजीयाज्जिनो जगति नाभिनरेन्द्रसूनु: श्रेयो नृपश्च कुरुगोत्रगृहप्रदीप:। याभ्यां बभूवतुरिह व्रतदानतीर्थे सारक्रमे परमधर्मरथस्य चक्रे।।१।।अर्थ — श्री नाभि राजा के पुत्र श्री वृषभ भगवान् सदा इस लोक में जयवंत रहें तथा कुरु गोत्ररूपी घर के प्रकाश करने वाले श्री श्रेयान् राजा भी इस लोक में सदा जयवंत रहें जिन दोनों महात्माओं की कृपा से…

भगवान ऋषभदेव!

July 23, 2019Lord ShantinathBal Vikas Part-2

#अनुप्रेषित [[ऋषभदेव]] प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव का जीवन दर्शन संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है-{” width=”100%” style=”padding-right:10px;” “- ” left”210px”ऋषभदेव]] प्रस्तुति-गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी जन्मभूमि-अयोध्या (उत्तर प्रदेश) पिता-महाराज नाभिराय ”माता”-महारानी मरुदेवी ”वर्ण”-क्षत्रिय वंश-इक्ष्वाकु ”देहवर्ण”-तप्त स्वर्ण सदृश ”चिन्ह”-बैल आयु-चौरासी लाख पूर्व वर्ष ”अवगाहना”-दो हजार हाथ ”गर्भ”-आषाढ़ कृ.२ जन्म-चैत्र कृ.९ ”तप”-चैत्र कृ.९ दीक्षा-केवलज्ञान वन एवं वृक्ष-प्रयाग-सिद्धार्थवन, वट वृक्ष (अक्षयवट)…

जैनशास्त्रों में तन्त्र-मन्त्रों के उल्लेख!

August 11, 2018Lord ShantinathArhat Vachana

जैनशास्त्रों में तन्त्र-मन्त्रों के उल्लेख जेण विणा लोगस्स वि ववहारो सव्वहा ण णिव्वहइ। तस्स भुवनेक्कगुरुणो णमो अणेगंतवायस्सयशस्तिलकचम्पू महाकाव्य, अष्टम आश्वास, पद्य २२।।   लोक में जितने प्रकार के पूजा—पाठ अथवा विधि—  विधान पाये जाते हैं, वे सब तन्त्र हैं। तन्त्र के लिये यन्त्र और मन्त्र की आवश्यकता होती है। उनके अभाव में तन्त्र—सिद्धि में पूर्णता…

दर्शन पाठ!

July 19, 2018Lord ShantinathBaal Vikaas Part 1

दर्शन पाठ   दर्शनं देवदेवस्य, दर्शनं पापनाशनम्। दर्शनं स्वर्गसोपानं, दर्शनं मोक्षसाधनम्।।१।।   दर्शनेन जिनेन्द्राणां, साधूनां वन्दनेन च। न चिरं विद्यते पापं, छिद्रहस्ते यथोदकम्।।२।।   वीतरागमुखं दृष्ट्वा, पद्मरागसमप्रभं। नैक जन्मकृतं पापं, दर्शनेन विनश्यति।।३।।   दर्शनं जिनसूर्यस्य, संसारध्वान्तनाशनम्। बोधनं चित्तपद्मस्य, समस्तार्थ प्रकाशनम्।।४।।   दर्शनं जिनचन्द्रस्य, सद्धर्मामृतवर्षणं। जन्मदाहविनाशाय, वर्धनं सुखवारिधे:।।५।।   जीवादितत्त्वं प्रतिपादकाय, सम्यक्त्वमुख्याष्टगुणाणर्वाय। प्रशांतरूपाय दिगम्बराय, देवाधिदेवाय नमो…

03.अनित्यत्वाधिकार!

July 15, 2018Lord ShantinathPadamnadi Panchvinshatika

अनित्यत्वाधिकार अब आचार्य अनित्य पञ्चाशतनामक अधिकार को वर्णन करते हुवे प्रथम मंगलाचरण करते हैं।   आर्या छंदजयति जिनो धृतिधनुषामिषुमाला भवति योगियोधानाम्। यद्वाकरूणामय्यपि मोहरिपुप्रहतये तीक्ष्णा।।१।।   अर्थ —दयामयी भी जिस जिनेन्द्र की वाणी धैर्यरूपी धनुष को धारण करने वाले योगीरूपी योधाओं के मोहरूपी बैरी के नाश करने के लिये पैनी बाणों की पंक्ति के समान है…

04.एकत्वाधिकार का वर्णन!

July 15, 2018Lord ShantinathPadamnadi Panchvinshatika

[[श्रेणी:पद्मनंदीपञ्चविंशतिका]] ===एकत्वाधिकार का वर्णन=== अनुष्टुप छंद चिदानन्दैकसद्भावं परमात्मानमव्ययम् । प्रणमामि सदा शान्तं शान्तये सर्वकर्मणाम् ।।१।। अर्थ — चैतन्यस्वरूप आनन्दस्वरूप अविनाशी और शान्त ऐसे परमात्मा को सर्वकार्यों की शान्ति के लिये मैं नमस्कार करता हूँ। भावार्थ — जो परमात्मा [[चैतन्यस्वरूप]] है तथा आनन्दस्वरूप है और नित्य, शाश्वत तथा समस्त क्रोधादिकर्मों से रहित है ऐसा परमात्मा मुझे…

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