मूलाचार सार
मूलाचार सार सकल वाङ्मय द्वादशांगरूप है। उसमें सबसे प्रथम अंग का नाम आचारांग है और यह संपूर्ण श्रुतस्कंध का आधारभूत ‘श्रुतस्कंधाधारभूतं’१ है। समवसरण में भी बारह सभाओं में से सर्वप्रथम सभा में मुनिगण रहते हैं। उनकी प्रमुखता करके भगवान् की दिव्यध्वनि में से प्रथम ही गणधरदेव आचारांग नाम से रचते हैं। इस अंग की १८…