इस अकृत्रिम वृक्षों पर जिनमंदिर पुस्तक में जैन समाज की सर्वोच्च साध्वी परम पूज्य
गणिनी प्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने त्रिलोकसार, तिलोयपण्णत्ति, जंबूद्वीप-
-पण्णत्ति, लोकविभाग, तत्त्वार्थवार्तिक आदि अनेक ग्रंथों का अध्ययन करके जम्बूवृक्ष, शाल्मली वृक्ष आदि वृक्षों की परिवार संख्या को निकाला है। जितने इनके परिवार वृक्ष हैं उतने ही जिनमंदिर हैं। जिनका विस्तार से इस पुस्तक में पूज्य माता जी ने वर्णन किया है।
इस ‘अकृत्रिम वृक्ष जिनालय विधान’ में परम पूज्य गणिनीप्रमुख श्री ज्ञानमती माताजी ने
ढाईद्वीप के अन्दर पंचमेरु सम्बन्धी दस अकृत्रिम वृक्ष हैं, जिन पर जिनमंदिर एवं
जिनप्रतिमाएँ विराजमान हैं, उनकी पूजा दी है। इन दस अकृत्रिम वृक्षों के जितने
परिवार वृक्ष हैं उन सब पर भी जिनमंदिर एवं जिनप्रतिमाएँ हैं उन सभी प्रतिमाओं को
भी इस विधान में अर्घ्य चढ़ाया है।
हमारे जैन आगम में ४ अनुयोगों में द्वादशांग को निबध्द किया गया है—प्रथमानुयोग,
करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।
इनमें से करणानुयोग के अंतर्गत तीन लोक में स्थित अधोलोक, मध्यलोक, ऊध्र्वलोक का वर्णन हैं | अकृत्रिम जिनालय अर्थात् अनादिनिधन, शाश्वत जिनमंदिर जिन्हें किसी ने नहीं बनाया है, जिनका न तो आदि है न अंत, जो सदैव विद्यमान रहते हैं | पूज्य
ज्ञानमती माताजी ने करणानुयोग के ग्रंथों का अनेक बार स्वाध्याय किया है उन्हीं में से त्रिलोकसार, तिलोयपण्णत्ति, जंबूद्वीप पण्णत्ति, लोकविभाग और सिद्धान्तसार दीपक इन ५ प्राचीन आगमग्रंथों से इस महत्त्वपूर्ण विषय को लेकर हम सबके ज्ञानवर्धन के लिए इस लघु पुस्तक की रचना की है। इन जिनभवनों को ‘त्रिभुवनतिलक जिनमंदिर’ की संज्ञा दी गई हैं |