अकृत्रिम जिनमंदिर रचना- पढ़ें
हमारे जैन आगम में ४ अनुयोगों में द्वादशांग को निबध्द किया गया है—प्रथमानुयोग,
करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोग।
इनमें से करणानुयोग के अंतर्गत तीन लोक में स्थित अधोलोक, मध्यलोक, ऊध्र्वलोक का वर्णन हैं | अकृत्रिम जिनालय अर्थात् अनादिनिधन, शाश्वत जिनमंदिर जिन्हें किसी ने नहीं बनाया है, जिनका न तो आदि है न अंत, जो सदैव विद्यमान रहते हैं | पूज्य
ज्ञानमती माताजी ने करणानुयोग के ग्रंथों का अनेक बार स्वाध्याय किया है उन्हीं में से त्रिलोकसार, तिलोयपण्णत्ति, जंबूद्वीप पण्णत्ति, लोकविभाग और सिद्धान्तसार दीपक इन ५ प्राचीन आगमग्रंथों से इस महत्त्वपूर्ण विषय को लेकर हम सबके ज्ञानवर्धन के लिए इस लघु पुस्तक की रचना की है। इन जिनभवनों को ‘त्रिभुवनतिलक जिनमंदिर’ की संज्ञा दी गई हैं |