त्रैलोक्य वंदनाष्टक (चैत्यवंदनाष्टक)
त्रैलोक्य वंदनाष्टक (चैत्यवंदनाष्टक) त्रिभुवन के जितने चैत्यालय, अकृत्रिम उनको नित वंदूँ। भव भव के संचित पाप पुंज, उन सबको इक क्षण में खंडूँ।। असुरों के चौंसठ लाख नागसुर, के चौरासी लाख कहे।वायूसुर के छ्यानवे लाख, सुपरण के बहत्तर लक्ष कहें।।१।। विद्युत् अग्नी स्तनित उदधि, दिक् द्वीपकुमार भवनवासी।इन छह में पृथक्-पृथक् जिनगृह, छीयत्तर लक्ष सुगुण-राशी।। सब...