महालक्ष्मी माता की स्तुति रचयित्री -प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका चंदनामती तर्ज- अच्छा सिला…….. लक्ष्मी महादेवी का श्रृंगार करो जी। अपने घर में लक्ष्मी का भंडार भरो जी।। टेक.।। जिनवर के ये सदा संग रहती हैं। समवसरण में आगे-आगे चलती हैं।। उसी वैभव को नमस्कार करो जी। अपने घर में लक्ष्मी का भंडार भरो…
राजगृही तीर्थ वंदना रचयित्री-आर्यिका चन्दनामती शेरछन्द मुनिसुव्रतेश जन्मभूमि को प्रणाम है। श्रीराजगृही तीर्थ की महिमा महान है।।टेक.।। यूँ तो जगत में जन्मते हैं प्राणि अनन्ते। मरते हैं प्रतिक्षण भी यहाँ प्राणि अनन्ते।। मुनिसुव्रतेश जन्मभूमि को प्रणाम है। श्रीराजगृही तीर्थ की महिमा महान है।।१।। एकेन्द्रि से पंचेन्द्रि तक जो जीव आतमा। उन सबमें छिपा…
पावापुरी सिद्धक्षेत्र वंदना वंदना मैं करूँ पावापुर तीर्थ की, जो है निर्वाणभूमी महावीर की।। अर्चना मैं करूँ पावापुर तीर्थ की, जो है कैवल्यभूमी गणाधीश की।। जैनशासन के चौबीसवें तीर्थंकर, जन्मे कुण्डलपुरी राजा सिद्धार्थ घर। रानी त्रिशला ने सपनों का फल पा लिया, बोलो जय त्रिशलानंदन महावीर की।।१।। वीर वैरागी बनकर युवावस्था में,…
समवसरण विंशतिका प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री चंदनामती माताजी दोहा सरस्वती लक्ष्मी जहाँ, नितप्रति करें प्रणाम। पुण्यमयी उस धाम का, समवसरण है नाम।। समवसरण का स्वरूप छंद-विष्णुपद (कहाँ गये चक्री-बारहभावना) जहाँ पहुँचते ही दर्शक का पाप शमन होता। जहाँ पहुँचते ही मानी का मान गलन होता।। सबको शरण प्रदाता वह ही समवसरण…
श्री पार्श्वनाथ स्तुति प्रदीपकुमार जैन, बहराइच (उ.प्र.) आज आया शरण पार्श्व प्रभुवर तेरी। विनती करता हूँ मैं सुन लो विनती मेरी।। पौष कृष्णा एकादशी थी शुभ तिथि। जन्में प्रभुवर नगर वाराणसि धन्य थी।। मात वामा की गोदी में खेले प्रभू । पालनें में झुलावें माँ झूलें प्रभू ।। नाग नागिन का उद्धार…
श्री पंचमेरुभक्ति: उपजाति छंद श्रीपंचमेरुस्थजिनेन्द्रगेहान्, प्रणम्य बिंबानि च वीरनाथं। तत्राभिषेकाप्तजिनाधिपांश्च, तान् पंचमेरून् किल संस्तवीमि।।१।। पृथ्वी छंद सुदर्शनगिरिं स्तुवे विजयमेर्वचलमंदरान्, सुविद्युदनुमालिभूमिभृदनाद्यनंतात्मकान् । सुरेन्द्रविहितातिशायि-जिनजन्मकालोत्सवे, सुधर्मवरतीर्थकृत्-स्नपनवैश्च पूज्यानिमान् ।।२।। सुदर्शनमहागिरेर्भुवि सुभद्रशालं वनं, ह्यकृत्रिमजिनालयाः सुरनुताश्चतुर्दिक्षु च। सुरत्नमयमूर्तयो जिनवरस्य पुण्यप्रदा, नमोस्तु सततं भवाब्धितरणाय ताभ्यो मुदा।।३।। भुवः शतक पंचयोजनगतं वनं नंदनं, विचित्रजलयंत्रभृज्जलभृतः सुवाप्योऽत्र च। त्रिशालपरिवेष्टिताः कनक-रत्न-मालाध्वजैः, सुवर्णघटधूपकुंभ-जिनचैत्यवृक्षैर्युताः।।४।। अनंत-भव-संचितां सकल-कर्म-राशिं क्षणात्, दहंति…
सम्मेदशिखर टोंक वन्दना तीर्थराज सम्मेदशिखर है, शाश्वत सिद्धक्षेत्र जग में। एक बार जो करे वन्दना, वह भी पुण्यवान सच में।। ऊँचा पर्वत पार्श्वनाथ हिल, नाम से जाना जाता है। जिनशासन का सबसे पावन, तीरथ माना जाता है।।१।। जब प्रत्यक्ष करें यात्रा, उस पुण्य का वर्णन क्या करना। लेकिन प्रतिदिन भी परोक्ष में, गिरि…
शांतिभक्ति पूज्यपाद कृत न स्नेहाच्छरणं प्रयान्ति भगवन् ! पादद्वयं ते प्रजा:। हेतुस्तत्र विचित्रदु:खनिचय:, संसारघोरार्णव: ।। अत्यन्तस्पुरदुग्ररश्मिनिकर— व्याकीर्ण—भूमण्डलो । ग्रैष्म: कारयतीन्दपादसलिल— च्छायानुकरागं रवि:।।१।। भगवन्! सब जन तव पद युग की शरण प्रेम से नहिं आते। उसमें हेतु विविधदु:खों से भरित घोर भववारिधि है।। अतिस्पुरित उग्र किरणों से व्याप्त किया भूमंडल है। ग्रीषम ऋतु रवि राग्…