चौबीस तीर्थंकर पूजा अथ स्थापना शंभु छंद पुरुदेव आदि चौबिस तीर्थंकर, धर्मतीर्थ करतार हुये। इस जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के, आर्यखंड में नाथ हुये।। इन मुक्तिवधू परमेश्वर का हम, भक्ती से आह्वान करें। इनके चरणाम्बुज को जजते, भव भव दु:खों की हानि करें।। ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवादिचतुर्विंशतितीर्थंकरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। …
चौबीस तीर्थंकर गणिनी पूजा अथ स्थापना गीता छंद तीर्थंकरों के समवसृति में, आर्यिकाएँ मान्य हैं। ब्राह्मी प्रभृति से चंदना तक, सर्व में हि प्रधान हैं।। व्रतशील गुण से मंडिता, इंद्रादि से पूज्या इन्हें। आह्वान करके पूजहूँ, त्रयरत्न से युक्ता तुम्हें।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितगणिनी-ब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकासमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरसमवसरणस्थितगणिनी-ब्राह्मीप्रमुखसर्वार्यिकासमूह!…
चौबीस तीर्थंकर गणधर पूजा अथ स्थापना गीता छंद गणधर बिना तीर्थेश की, वाणी न खिर सकती कभी। निज पास में दीक्षा ग्रहें, गणधर भि बन सकते वही।। तीर्थेश की ध्वनि श्रवणकर, उन बीज पद के अर्थ को। जो ग्रथें द्वादश अंगमय, मैं जजूँ उन गणनाथ को।।१।। ॐ ह्रीं चतुर्विंशतितीर्थंकरगणधरसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट्…
चारित्रशुद्धि व्रत पूजा स्थापना शंभु छंद सम्यक्चारित्र त्रयोदशविध, ये परमानंद प्रदाता हैं। इनके बारह सौ चौंतिस व्रत, ये परमसिद्धि के दाता हैं।। इनका वन्दन पूजन करके, विधिवत् आराधन करते हैं। निज हृदय कमल में धारण कर, हम स्वात्म सुधारस भरते हैं।।१।। ॐ ह्रीं त्रयोदशचारित्रभेदस्वरूप-एकसहस्रद्विशत-चतुस्त्रिंशन्मंत्रसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं त्रयोदशचारित्रभेदस्वरूप-एकसहस्रद्विशत-चतुस्त्रिंशन्मंत्रसमूह!…
चौंसठ ऋद्धि पूजा अथ स्थापना गीता छंद चौबीस तीर्थंकर जगत में, सर्व का मंगल करें। गुणरत्न गुरु गुण ऋद्धिधर, नित सर्व मंगल विस्तरें।। गुणरत्न चौंसठ ऋद्धियाँ, मंगल करें निज सुख भरें। मैं पूजहूँ आह्वान कर, मेरे अमंगल दुख हरें।।१।। ॐ ह्रीं चतु:षष्टिऋद्धिसमूह! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं चतु:षष्टिऋद्धिसमूह!…
गौतम स्वामी पूजा गौतम स्वामी गीता छंद गणपति गणीश गणेश गण-नायक गणीश्वर नाम हैं। गणनाथ गणस्वामी गणाधिप, आदि नाम प्रधान हैं।। उन इंद्रभूति गणीन्द्र गौतम-स्वामि गणधर को जजूँ। स्थापना करके यहाँ सब, कार्य में मंगल भजूँ।।१।। ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरपरमेष्ठिन्! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं। ॐ ह्रीं श्रीगौतमगणधरपरमेष्ठिन्! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ:…
गणधरवलय पूजा तर्ज—आवो बच्चों तुम्हें दिखायें……. आवो हम सब करेें अर्चना, गणधर देव प्रधान की। जिनवर दिव्यध्वनी को झेलें, द्वादशांग श्रुतवान की।। वंदे गणधरम्-४।। अड़तालिस ऋद्धी को धारें, द्वादशगण के ईश्वर हैं। यंत्ररूप हैं मंत्ररूप हैं, तंत्ररूप भी परिणत हैं।। ऐसे गुरु को वंदन करते, मिले राह कल्याण की।।आवो.।। श्री गणधर गुरु की पूजा…
कुण्डलपुर तीर्थ पूजा रचयित्री-आर्यिका चन्दनामती स्थापना (चौबोल छन्द) महावीर…