स्वपक्षसाधक हेतु!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्वपक्षसाधक हेतु – Svapaksa Saadhaka Hetu. A motive for one’s own fulfillment.हेतु स्वपक्ष का साधक और पर पक्ष का दूषक होना चहिये अर्थात् अपने अभीष्ट अर्थ की सिद्वि करने वाला हेतू।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्वपक्षसाधक हेतु – Svapaksa Saadhaka Hetu. A motive for one’s own fulfillment.हेतु स्वपक्ष का साधक और पर पक्ष का दूषक होना चहिये अर्थात् अपने अभीष्ट अर्थ की सिद्वि करने वाला हेतू।
चतुर्दश पूर्वधर Acharyas possessing knowledge of 14 Purvas. १४ पूर्व के ज्ञाता ५ मुनि ; विष्णु , नंदिमित्र , अपराजित , गोवर्धन , भद्रबाहु ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मुख–Mukha. The fore–part, entrance, front, mouth, face. अग्रभाग, प्रवेश द्वार, प्रधान–मुख्य, धवला के अनुसार जीव प्रदेशो के विशिष्ट संस्थानों को मुख कहते है”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्वतः सिद्व – Svatah Siddha. Self proved or evident.जो स्वभाव से ही सिद्व हो उसे स्वतः सिद्व कहते है अथवा सत् द्रव्य का स्वभाव जो स्वभाव से ही सिद्व है, इसलिये वह अनादि अनंत है।
चतुर्थकाल The fourth division of Avasarpini Kal (regressive half cycle of time). अवसर्पिणी काल के ६ भेदों में दुषमा-सुषमा नामक चौथा भेद , जिसमें २४ तीर्थंकर जन्म लेते हैं ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
जयविलास Name of a commentary writer of ‘Gyanarnava’. ज्ञानार्णव ग्रन्थ के टीकाकार।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्यान्नित्यत्व – Syaannityatva. Eternity of some particular characteristics in matter.द्रव्य के सामान्य 11 स्वभावो मे एक स्वभाव। अपनी अपनी नाना पर्यायो मे यही वही है इस प्रकार द्रव्य की प्राप्ति कथंचित् नित्य स्वभाव है।
जय Victory, Name of the pre-destined 21st Tirthankar, Other name of Acharya Jaisen of Moolsangh, Name of chief disciples of Lord Rishabhdev, Vimalnath and Anantnath, Name of the 11th Chakravarti (emperor), Name of a city in the south & the north of Vijayardha mountain. भावीकालीन २१वें तीर्थंकर , मूलसंघ के आचार्य जयसेन का परनाम ,…
[[श्रेणी:शब्दकोष]] स्यादशुद्धत्व – Syaadassuddhatva. Nature related to impurity of matters in some aspect.द्रव्य का एक सामान्य स्वभाव। शुद्व के विपरित अर्थात् कथंचित् अशुद्व स्वभाव है।
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विद्यासागर – Vidyashagara. Name of a great Digambar Jain Acharya of 20th century. चारित्रचक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी महाराज के द्वितीय पट्टाधीश आचार्य श्री शिवसागर महाराज के शिष्य मुनि श्री ज्ञानसागर महाराज (जो बाद में समाज द्वारा आचार्य बनाये गये) द्वारा दीक्षित बीसवीं सदी के एक प्रभावक आचार्य “