मेरु के जिनमंदिर
मेरु के जिनमंदिर (लोकविभाग से) दैर्घ्यं योजनपञ्चाशद्विस्तारस्तस्य चार्धकम् । सप्तिंत्रशद्द्विभागश्च चैत्यस्योच्छ्रय इष्यते।।२९०।। ३७ । १/२। चतुर्योजनविस्तारं द्वारमष्टोच्छ्रयं पुनः। तनुद्वारे च तस्यार्धमाने क्रोशावगाढकम् ।।२९१।। …
मेरु के जिनमंदिर (लोकविभाग से) दैर्घ्यं योजनपञ्चाशद्विस्तारस्तस्य चार्धकम् । सप्तिंत्रशद्द्विभागश्च चैत्यस्योच्छ्रय इष्यते।।२९०।। ३७ । १/२। चतुर्योजनविस्तारं द्वारमष्टोच्छ्रयं पुनः। तनुद्वारे च तस्यार्धमाने क्रोशावगाढकम् ।।२९१।। …
रसोई घर की शुद्धि में महिलाओं की भूमिका लेखिका —कुमुदनी जैन,कानपुर निवासी ,जम्बूद्वीप—हस्तिनापुर प्र० जैन धर्म में भगवान् महावीर ने २ प्रकार के मार्ग बतलाये हैं मुनि मार्ग और गृहस्थ मार्ग । ये दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं अर्थात् दोनों के सम्मिलन से ही मोक्ष का मार्ग साकार हो सकता है । जहाँ…
मन्दरपर्वत के जिनमंदिर (जंबूद्वीपपण्णत्ती से) णमिऊण सुपासजिणं सुरिंदवइसंथुवं विगयमोहं । …
भद्रशालवन के जिनमन्दिर (सिद्धान्तसार दीपक से) अथ मेरोश्चतुर्दिक्षु भद्रशालवनस्थितान्। वर्णयामि मुदोत्कृष्टांश्चतुरः श्रीजिनालयान्।।६।। …
भवनवासी देवों के भवनों में चैत्यवृक्ष एवं जिनमन्दिर तेसिं चउसु दिसासुं जिणदिट्ठपमाणजोयणे गंता। …
दान जीयाज्जिनो जगति नाभिनरेन्द्रसूनु: । श्रेयो नृपश्च कुरुगोत्रगृहप्रदीप:।।याभ्यां बभूवतुरिह व्रतदानतीर्थे, सारक्रमे परमधर्मरथस्य चक्रे।।१।। जिनके द्वारा उत्तम रीति से चलने वाले श्रेष्ठ धर्म रूपी रथ के चाक के समान व्रत और दानरूप दो तीर्थ यहाँ आविभूर्त हुये हैं वे नाभिराज के पुत्र ऋषभदेव तथा कुरुवंश गृह के दीपक के समान राजा श्रेयांसकुमार भी जयवंत होवें।…
लोक का वर्णन सामान्य लोक सर्वज्ञ भगवान से अवलोकित अनन्तानन्त अलोकाकाश के बहुमध्य भाग में ३४३ राजु प्रमाण पुरुषाकार लोकाकाश है। यह लोकाकाश जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल इन पाँचों द्रव्यों से व्याप्त है। अनादि अनन्त है। इस लोक के तीन भेद हैं- अधोलोक, मध्यलोक और ऊर्ध्वलोक। सम्पूर्ण लोक की ऊँचाई १४ राजुप्रमाण है…
समाज और संस्कारों के निर्माण में नारी का योगदान श्रीमति सुलेखा जैन, बीना नारी सृष्टि का आधार है। नारी के बिना संसार की हर रचना अपूर्ण तथा रंगहीन है। नारी मृदु होते हुए भी कठोर है। उसमें पृथ्वी जैसी सहनशीलता, सूर्य जैसा ओज तथा सागर जैसा गांभीर्य एक साथ दृष्टिगोचर होता है । नारी के…
५. वर्तमान में निर्दोष मुनि इस युग में निर्दोष साधु समुदाय रहेगा कुंदकुंदादि निर्ग्रन्थाचार्य स्वयं पंचमकाल में हुए हैं, और उन्होंने स्वयं पंचमकाल में निर्दोष मुनियों का अस्तित्व सिद्ध किया है- भगवान श्री कुन्दकुन्ददेव कहते हैं- ‘‘इस भरतक्षेत्र में और पंचमकाल में आत्मस्वभाव में स्थित होने पर साधु को धर्मध्यान होता है। जो इस बात…