जिनमंदिर व जिनप्रतिमा निर्माण का पुण्य
जिनमंदिर व जिनप्रतिमा निर्माण का पुण्य कुत्थुंभरिदलभेत्ते जिणभवणे जो ठवेइ जिणपणिमं। सरिसवमेत्तं पि लहेइ सो णरो तित्थयरपुण्णं।।४८१।। जो पुण जिणिंदभवणं समुण्णयं परिहि–तोरणसमग्गं। णिम्मावइ तस्स फलं को सक्कइ वण्णिउं सयलं।।४८२।। अर्थ–जो मनुष्य कुथुंम्भरी (धनिया) के दलमात्र अर्थात् पत्र बराबर जिनभवन बनवाकर उसमे सरसों के बराबर भी जिनप्रतिमा को स्थापित करता है, वह तीर्थंकर पद पाने के…