जिनमंदिर में भगवान के अभिषेक का एवं घंटा लगाने का पुण्य
जिनभगवान के अभिषेक करने के फल से मनुष्य सुदर्शन मेरू के ऊपर क्षीरसागर के जल से सुरेन्द्र प्रमुख देवो के द्वारा भक्ति के साथ अभिषेक किया जाता है।
जिनभगवान के अभिषेक करने के फल से मनुष्य सुदर्शन मेरू के ऊपर क्षीरसागर के जल से सुरेन्द्र प्रमुख देवो के द्वारा भक्ति के साथ अभिषेक किया जाता है।
जिनमंदिर व जिनप्रतिमा निर्माण का पुण्य कुत्थुंभरिदलभेत्ते जिणभवणे जो ठवेइ जिणपणिमं। सरिसवमेत्तं पि लहेइ सो णरो तित्थयरपुण्णं।।४८१।। जो पुण जिणिंदभवणं समुण्णयं परिहि–तोरणसमग्गं। णिम्मावइ तस्स फलं को सक्कइ वण्णिउं सयलं।।४८२।। अर्थ–जो मनुष्य कुथुंम्भरी (धनिया) के दलमात्र अर्थात् पत्र बराबर जिनभवन बनवाकर उसमे सरसों के बराबर भी जिनप्रतिमा को स्थापित करता है, वह तीर्थंकर पद पाने के…
चौबीस तीर्थंकर इस अवसर्पिणी काल में हुए हैं- १. श्री ऋषभदेव २. श्री अजितनाथ ३. श्री संभवनाथ ४. श्री अभिनंदननाथ ५. श्री सुमतिनाथ ६. श्री पद्मप्रभनाथ ७. श्री सुपार्श्वनाथ ८. श्री चन्द्रप्रभनाथ ९. श्री पुष्पदंतनाथ १०. श्री शीतलनाथ ११. श्री श्रेयांसनाथ १२. श्री वासुपूज्यनाथ १३. श्री विमलनाथ १४. श्री अनंतनाथ १५. श्री धर्मनाथ १६. श्री…
जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र और ऐरावत क्षेत्र में षट काल परिवर्तन होता रहता है | जम्बूद्वीप में 458 अकृत्रिम चैत्यालय हैं |
जैन दर्शन जिसके द्वारा वस्तु तत्त्व का निर्णय किया जाता है वह दर्शनशास्त्र है। कहा भी है-‘‘दृश्यते निर्णीयते वस्तुतत्त्वमनेनेति दर्शनम्।’’ इस लक्षण से दर्शनशास्त्र तर्क-वितर्क, मन्थन या परीक्षास्वरूप हैं जो कि तत्त्वों का निर्णय कराने वाले हैं। जैसे-यह संसार नित्य है या अनित्य ? इसकी सृष्टि करने वाला कोई है या नहीं ? आत्मा का…
आर्यिकाओं की नवधाभक्ति आगमोक्त है आर्यिकाएँ यद्यपि उपचार से महाव्रती हैं फिर भी वे अट्ठाईस मूलगुणों को धारण करती हैं, नवधाभक्ति की पात्र हैं और सिद्धांत ग्रंथ आदि को पढ़ने का, लिखने का उन्हें अधिकार है। इस विषय पर मैं आपको आगम के परिप्रेक्ष्य में बताती हूँ-चारित्रचक्रवर्ती आचार्यश्री शांतिसागरजी महाराज की परम्परा में जो…
गुरु-शिष्य की व्यवस्था जो रत्नत्रय को धारण करने वाले नग्न दिगंबर मुनि हैं वे गुरु कहलाते हैं। इनके आचार्य, उपाध्याय, साधु ये तीन भेद माने हैं। ये तीनों प्रकार के गुरु अट्ठाईस मूलगुण के धारक होते हैं। उनको बताते हैं- वदसमिदिंदियरोधो लोचो आवासयमचेलमण्हाणं। खिदिसयणमदंतवणं ठिदिभोयणमेयभत्तं च।। एदे खलु मूलगुणा समणाणं जिणवरेहिं पण्णत्ता। एत्थ पमादकदादो आइचारादो…
दु:षमकाल में भावलिंगी मुनि होते हैं दिगंबर जैन संप्रदाय में पांच परमेष्ठी के अंतर्गत आचार्य, उपाध्याय और साधु इन परमेष्ठियों को दिगंबर मुनिमुद्रा का धारक ही माना है। इन दिगंबर मुनियों के दो भेद होते हैं ऐसा आगम में कथन है। यथा- ‘‘जिनेन्द्रदेव ने मुनियों के जिनकल्प और स्थविरकल्प ऐसे दो भेद कहे हैं।’’ जिनकल्पी…
उत्तम पात्र मुनियों की सार्थक नामावली दर्शनप्रतिमा, व्रतप्रतिमा, सामायिक प्रतिमा, प्रोषधोपवास प्रतिमा, कृषि आदि त्याग प्रतिमा, दिवामैथुन त्याग प्रतिमा, ब्रह्मचर्य प्रतिमा, सचित्तत्याग प्रतिमा, परिग्रहत्याग प्रतिमा, आरंभत्याग प्रतिमा और उद्दिष्ट त्याग प्रतिमा ये ग्यारह प्रतिमायें हैं। अन्यत्र ग्रन्थों में श्री कुंदकुंद आदि आचार्यों द्वारा कथित नाम से यहाँ कुछ अंंतर है। यथा-दर्शन, व्रत, सामायिक, प्रोषध, सचित्तत्याग,…
पंचमकाल में मुनियों का अस्तित्व अहो! दु:षमकालांतं श्रमणाश्चार्यिका इह। विहरन्ति निराबाधं कुर्युस्ते ताश्च मंगलम्।।१।। अहो! प्रसन्नता की बात है कि इस भरतक्षेत्र में दु:षमकाल के अंत तक मुनि और आर्यिकायें निराबाध विहार करते रहेंगे। वे मुनि और आर्यिकायें सदा मंगल करें।निर्ग्रन्थ दिगम्बर मुनियों में जो जिनकल्पी और स्थविरकल्पी भेद हैं, उनका क्या स्वरूप है ?…