महाहिमवान के महापद्म सरोवर में तेरह कूट
महाहिमवान के महापद्म सरोवर में तेरह कूट महहिमवंते दोसुं पासेसुं वेदिवणाणि रम्मािण। गिरिसमदीहत्ताणिं वासादीणं च हिमवगिरिं२।।१७२३।। …
महाहिमवान के महापद्म सरोवर में तेरह कूट महहिमवंते दोसुं पासेसुं वेदिवणाणि रम्मािण। गिरिसमदीहत्ताणिं वासादीणं च हिमवगिरिं२।।१७२३।। …
गो, गोपाल, गोधरा— पृथ्वी सियाराम दास त्यागी इस वैज्ञानिक युग में घोर अवैज्ञानिक मतिभ्रम फैला हुआ है । तभी तो नास्तिकता, हिंसा, स्वार्थ लोलुपता आदि अवगुणों को अधिकाधिक प्रश्रय मिल रहा है। मानवता पथभ्रष्ट हो गयी है । मनुष्य का मस्तिष्क और शरीर दोनों विकृत से प्रतीत हो रहे हैं। यही कारण है कि विज्ञान…
कवलाहार वाद एवं नय निक्षेपादि विचार ‘केवली कवलाहार करते हैं या नहीं’ यह विषय आज जितने और जैसे विवाद का बन गया है शायद दर्शनयुग के पहिले उतने विवाद का नहीं रहा होगा। ‘सयोग केवली तक जीव आहारी होते हैं’ यह सिद्धान्त दिगम्बर, श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं को मान्य है क्योंकि—‘‘विग्गहगइमावण्णा केवलिणो समुहदो अजोगी य। सिद्धा…
चिन्तामणि १००८ भगवान पार्श्वनाथ के जीवन से हमें क्या शिक्षा ग्रहण करना चाहिए? लेखिका—ब्र. कु. बीना जैन (संघस्थ) ‘‘भव संकट हर्ता पाश्र्वनाथ विघ्नों के संहारक तुम हो। हे महामना है क्षमाशील मुझमें भी पूर्ण क्षमा भर दोे।। यद्यपि मैंने शिवपथ पाया पर यह विघ्नों से भरा हुआ। इन विघ्नों को अब दूर करो सब सिद्धि…
जैन धर्म के कुछ जर्मन अध्येता यूरोप में जैन विद्या के अध्येताओं में सर्वप्रथम हरमन याकोबी (१८५०—१९३७) का नाम लिया जायेगा। वे अलब्रेख्त बेबर के शिष्य थे, जिन्होंने सर्वप्रथम मूल रूप में जैन आगमों का अध्ययन किया था। याकोबी ने बराहमिहिर के लघु जातक पर शोध प्रबन्ध लिखकर पी.एच.डी. प्राप्त की। केवल २३ वर्ष की…
महापुराण प्रवचन-३ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। भव्यात्माओं! महापुराण द्वादशांग का ही अंश है, इसका सीधा संबंध भगवान महावीर की वाणी से है। इसमें प्रारंभिक भूमिका के पश्चात् सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव का दश भवों का वर्णन है, वे ऋषभदेव वैâसे बने? इस बात को उनके दश अवतारों से जानना है। दिव्याष्टगुणमूर्तिस्त्वं, नवकेवललब्धिक:।…
जैन धर्म की विशेषताएँ १. जैन धर्म एक धार्मिक पुस्तक, शास्त्र पर निर्भर नहीं है। ‘विवेक ही धर्म है।’ २. जैन धर्म में ज्ञान प्राप्ति सर्वोपरि है और दर्शन मीमांसा धर्माचरण से पहले आवश्यक है। ३. देश, काल और भाव के अनुसार ज्ञान दर्शन से विवेचन कर उचित—अनुचित, अच्छे—बुरे का निर्णय करना और धर्म का…
अत्यंत सरल है जैनधर्म बहुत से लोग कहते हैं कि जैनधर्म एक बड़ा ही कठिन धर्म है, उसके लिए अमुख—अमुख प्रकार से बड़ी कठिन साधना करनी पड़ती है, बहुत भारी ज्ञान—चारित्रादि का गहन अभ्यास करना पड़ता है। कितने ही तो जैनधर्म के विद्वान होकर भी ऐसा कहते देखे जाते हैं कि जैनधर्म को समझना और…
दिगम्बर मुनि दीक्षा बिना मोक्ष नहीं धर्म नाशे क्रिया ध्वंसे, स्व सिद्धान्त विप्लवे। अपृष्ठेनापि वक्तव्यं, स्व सिद्धान्त रक्षणे।। वर्तमान समय में कुछ लोग दिगम्बर गुरूओं को नमोस्तु एवं विनय नहीं करते हैं, उन्हें सिद्धान्त शास्त्रों का अध्ययन कर यह श्रद्धान करना चाहिए कि बिना मुनि दीक्षा लिए मोक्ष नहीं मिलता है। भगवान पार्श्वनाथ के चरित्र…
मन्दिर जी जाने से पूर्व क्या करें ? इस प्रकार शुभ संकल्प करके दैनिक शौचादिक क्रियाओं से निपटकर, छने हुये जल से स्नान करना। नहाते समय शैम्पू या चर्बीयुक्त साबून प्रयोग नहीं करना चाहिये । पुन: धुले हुए साधारण वस्त्र पहनकर मन्दिर जी आना चाहिये । क्योंकि यदि हम चमकीले—भड़कीले वस्त्र पहनकर मन्दिर जी आते…