राष्ट्र की एकात्मकता एवं सामाजिक समरसता के संदर्भ में जैन चिन्तन दर्शन!
राष्ट्र की एकात्मकता एवं सामाजिक समरसता के संदर्भ में जैन चिन्तन दर्शन उपाध्याय श्री गुप्तिसागर जी महाराज प्रथम ‘राष्ट्र’ द्वितीय ‘समाज’ और तृतीय ‘मैं’ जीवन का अहं विषय जहां जिनका है, होगा। वे ही राष्ट्रीय एकता का संदेश प्रसारित कर सकते हैं। वे ही प्राणिमात्र की पीड़ा अपनी पीड़ा समझ दूर करने का पुरूषार्थ कर…