अनेकान्त एवं स्याद्वाद अनेकांत प्रत्येक वस्तु में अस्तित्व, नास्तित्व, एक, अनेक भेद, अभेद आदि अनंत धर्म पाये जाते हैं। अनेक अन्त (धर्म) को कहने वाला अनेकांत है। जैसे-जिनदत्त सेठ किसी का पिता है, किसी का पुत्र है, किसी का चाचा है, किसी का भतीजा है। पिता-पुत्र, भाई, भतीजा-चाचा आदि अनेक धर्म उसमें मौजूद हैं। जिसका…
श्रुतपंचमी पर्व का महत्त्व लेखिका- आर्यिका चंदनामती ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी, जो कि सम्पूर्ण जैन समाज में ‘‘श्रुतपंचमी’’ पर्व के नाम से विख्यात है। इस दिन द्वादशांगमयी सरस्वती देवी की पूजा की जाती है। उस श्रुतपंचमी पर्व के महत्त्व को यहाँ दर्शाया जा रहा है— सौराष्ट देश में ऊर्जयंतगिरि की चंद्रगुफा में निवास करने वाले अष्टांगमहानिमित्तधारी…
मोक्ष-विविध दार्शनिकों के मत में परम विदुषी रत्न १०५ गणिनी आर्यिका श्री ज्ञानमती माताजी मोक्षमार्गस्य नेतारं भेत्तारं कर्मभूभृतां। ज्ञानातारं विश्वतत्त्वानां वंदे तदुगुणलब्धये।।१।। सर्व:प्रेप्सति सत्सुखाप्तिमचिरात्, सा सर्वकर्मक्षयात्।’’ संसार में सभी प्राणी सच्चे सुख की प्राप्ति शीघ्र ही चाहते हैं अर्थात् ऐसे सुख को प्राप्त करना चाहते हैं कि जिसका कभी भी विनाश नहीं हो सके अथवा…
समयसार का पद्यानुवाद : एक अद्भुत काव्य प्रतिभा समीक्षक—पं. खेमचंद जैन, जबलपुर (म.प्र.) (कार्याध्यक्ष-तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत् महासंघ) नम: श्री पुरुदेवाय विश्वतत्त्वार्थ दर्शिने। सर्वा भाषाकला यस्मात् आविर्भूता महीतले।। प्राचीन काल से ही भगवान शांतिनाथ, कुन्थुनाथ, अरहनाथ भगवंतों के चार-चार कल्याणकों से परिपूत, पावन एवं क्षेत्रमंगल स्वरूप हस्तिनापुर की धरा अत्यन्त पावन एवं पवित्र रही है।…
ध्यान साधना : एक अध्ययन समीक्षक—डॉ. शेखरचन्द्र जैन, अहमदाबाद’ (पूर्व अध्यक्ष-तीर्थंकर ऋषभदेव जैन विद्वत महासंघ)’ ध्यान साधना वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला का १९५ वाँ पुष्प है। जिसका प्रकाशन १७ जुलाई सन् २०००, वीरशासन जयंती के अवसर पर श्री दिगम्बर जैन त्रिलोक शोध संस्थान द्वारा किया गया। संघस्थ ब्र. कु. सारिका जैन ने अपनी प्रस्तावना में सच…
नवग्रह शांति विधान : एक समीक्षा —पं वीरेन्द्र कुमार जैन, जैनदर्शनाचार्य जम्बूद्वीप हस्तिनापुर (मेरठ) मोहाशक्त प्राणी संसार से भयाकुलित रहता है, अनेक प्रकार की आकुलताओं से घिरा रहता है, परिजन-पुरजन, इष्ट संयोग आदि में सुखानुभूति करता है। असाताकर्म के मन्दोदय में, साता वेदनीय के उदय में अपने आप को पूर्णतः सुखी मानकर पूजापाठ आदि को,…