धर्मध्यान!
धर्मध्यान संसार, शरीर और भोगों से विरक्त होने के लिए या विरक्त होने पर उस भाव की स्थिरता के लिए जो प्रणिधान होता है, उसे धर्मध्यान कहते हैं। उसके चार भेद हैं-आज्ञा, अपाय, विपाक और संस्थान। इनकी विचारणा के निमित्त मन को एकाग्र करना धम्र्यध्यान है। सर्वज्ञ प्रणीत आगम को प्रमाण मान करके ‘यह इसी…