पद्मनन्दिपञ्चविंशतिका
श्री शांतिनाथ स्तोत्र शार्दूलविक्रीडित छंद त्रैलोक्याधिपतित्वसूचनपरं लोकेश्वरैरुद्धृतं यस्योपर्युपरीन्दुमण्डलनिभं छत्रत्रयं राजते । अश्रांतोद्गतकेवलोज्जवलरुचा निर्भर्सितार्कप्रभं सोऽस्मान् पातु निरञ्जनो जिनपति: श्री शांतिनाथ: सदा ।।१”” अर्थ— जिन शांतिनाथ भगवान के मस्तक के ऊपर तीनों लोक के स्वामीपने के प्रकट करने में तत्पर तथा देवेन्द्रों द्वारा आरोपित चंद्रमा के प्रतिबिम्ब के समान तीन छत्र शोभित होते हैं और निरंतर उदय…