10.5 ‘‘चारित्तं सर्वजिनैश्चरितं प्रोक्तं च सर्वशिष्येभ्य:। प्रणमामि पंचभेदं, पंचमचारित्रलाभाय।।६।।
‘‘चारित्तं सर्वजिनैश्चरितं प्रोक्तं च सर्वशिष्येभ्य:। प्रणमामि पंचभेदं, पंचमचारित्रलाभाय।।६।। अमृतवर्षिणी टीका— चारित्र के ५ भेद हैं— सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसांपराय और यथाख्यात। षट्खंडागम पु. ३ से चारित्र के पाँच भेदों का वर्णन किया है— सूत्र—सामाइय-छेदोवट्ठावणसुद्धिसंजदेसु पमत्तसंजदप्पहुडि जाव अणियट्टिबादर-सांपराइयपविट्ठ उवसमा खवा त्ति ओघं।।१४९।।१ सूत्रार्थ-सामायिक और छेदोपस्थापन शुद्धिसंयत जीवों में प्रमत्तसंयत गुणस्थान से लेकर अनिवृत्तिबादर-सांपरायिकप्रविष्ट उपशामक और क्षपक…