शुद्धात्मा की परिणतिरूप धर्म का वर्णन
शुद्धात्मा की परिणतिरूप धर्म का वर्णन -शार्दूलविक्रीडित- नि:शेषामलशीलसद्गुणमयामत्यन्तसम्यस्थितां वंदे तां परमात्मन: प्रणयिनीं कृत्यान्तगां स्वस्थताम्। यत्रानन्तचतुष्टयामृतसरित्यात्मानमन्तर्गतं न प्राप्नोति जरादिदु:सहशिख: संसारदावानल:।।१०७।। अर्थ—समस्त निर्मलशीलगुणस्वरूप तथा सर्वथा समतारूप अवस्था में होने वाली और उत्कृष्ट आत्मा से प्रीति कराने वाली तथा जिसके होते सन्ते किसी प्रकार का कर्तव्य बाकी नहीं रहता, ऐसी स्वस्थता को मैं नमस्कार करता हूँ जिस अनंतविज्ञानादि…