जीवदया परमधर्म है श्री गौतमस्वामी द्वारा रचित जिस यति प्रतिक्रमण का पाठ हम साधुवर्ग हर पन्द्रह दिनों में करते हैं उसमें स्पष्ट कहा है कि- सुदं मे आउस्संतो ! इह खलु समणेण भयवदा महदिमहावीरेण समणाणं पंचमहव्वदाणि सम्मं धम्मं उवदेसिदाणि। तं जहा-पढमे महव्वदे पाणादिवादादो वेरमणं । हे आयुष्मन्त भव्यों ! मैंने (गौतम स्वामी ने) इस भरत…
एक भव को छोड़कर दूसरे भव के ग्रहण करने का नाम गति है। गति के चार भेद हैं-नरकगति, तिर्यंचगति, मनुष्यगति और देवगति।
आनादिकाल से जीवचारों गतियोंमें भ्रमण कर रहा है
शुभ कर्म करने से देव और मनुष्यगति को प्राप्त करता है|
अशुभ कर्म करने से तिर्यंच और नरकगति को प्राप्त करता है |
उत्तम मार्दव धर्म श्री रइधू कवि ने अपभृंश भाषा में मार्दव धर्म के विषय में कहा है मद्दउ—भाव—मद्दणु माण—णिंकदणु दय—धम्महु मूल जि विमलु।सव्वहं—हययारउ गुण—गण—सारउ तिसहु वउ संजम सहलु।।मद्दउ माण—कसाय—बिहंडणु, मद्दउ पंचिंदिय—मण—दंडणु।मद्दउ धम्मे करुणा—बल्ली, पसरइ चित्त—महीह णवल्ली।।मद्दउ जिणवर—भत्ति पयासइ, मद्दउ कुमइ—पसरूणिण्णासइ।मद्दवेण बहुविणय पवट्टइ—मद्दवेण जणवइरू उहट्टइ।।मद्दवेण परिणाम—विसुद्धी, मद्दवेण विहु लोयहं सिद्धी।मद्दवेण दो—विहु तउ सोहइ, मद्दवेण णरु जितगु…
धातकीखण्ड द्वीप में धातकी वृक्ष के परिवार वृक्षों की संख्या (तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ से) उत्तरदेवकुरूसुं खेत्तेसुं तत्थ धादईरुक्खा। चेट्ठंति य गुणणामो तेण पुढं धादईसंडो।।२६००।। धादइतरूण ताणं परिवारदुमा भवंति एदिंस्स। दीवम्मि पंचलक्खा सट्ठिसहस्साणि चउसयासीदी।।२६०१।। ५६०४८० । पियदंसणो पभासो अहिवइदेवा वसंति तेसु दुवे। सम्मत्तरयणजुत्ता वरभूसणभूसिदायारा।।२६०२।। आदरअणादराणं परिवारादो भवंति एदाणं। दुगुणा परिवारसुरा पुव्वोदिदवण्णणेहिं जुदा।।२६०३।। धातकीखण्ड द्वीप में धातकी वृक्ष…
अभक्ष्य विजय-अभक्ष्य किसे कहते हैं ? संजय-सुनो! हमें जैसा महाराज जी ने बतलाया है, वैसा ही बतलाता हूँ। जो पदार्थ भक्षण करने अर्थात् खाने योग्य नहीं होते हैं उन्हें अभक्ष्य कहते हैं। इनके पाँच भेद हैं-त्रस हिंसाकारक, बहुस्थावर हिंसाकारक, प्रमादकारक, अनिष्ट और अनुपसेव्य। (१) जिस पदार्थ के खाने से त्रस जीवों का घात होता है,…
पुष्पदन्तनाथ जन्मभूमि – काकन्दी (उत्तर प्रदेश) पिता – महाराजा सुग्रीव माता – महारानी जयरामा वर्ण – क्षत्रिय वंश – इक्ष्वाकु देहवर्ण – कुंदपुष्प सम श्वेत चिन्ह – मगर आयु – दो लाख पूर्व वर्ष अवगाहना – चार सौ हाथ गर्भ – फाल्गुन कृ.९ जन्म – मगसिर शु.१ तप – मगसिर शु. १ दीक्षा-केवलज्ञान वन एवं…
आवश्यक अपरिहाणि भावना षण्णामावश्यक क्रियाणां यथाकालप्रवर्तनमावश्यकाऽपरिहाणि:।।१४।। छह आवश्यक क्रियाओं को यथाकाल करना आवश्यक अपरिहाणि भावना है। सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग ये छह आवश्यक मुनियों के हैं। सभी जीवों में समताभाव रखते हुये विधिवत् त्रिकाल में सामायिक करना, चौबीस तीर्थंकरों की स्तुति करना, किसी एक तीर्थंकर, सिद्ध, आचार्य आदि तथा इनके प्रतिबिम्बों की…
मार्गप्रभावना भावना ज्ञानतपोजिनपूजाविधिना धर्मप्रकाशनं मार्गप्रभावनम्।।१५।। पर समयरूपी जुगुनुओं के प्रकाश को पराभूत करने वाले ज्ञान रवि की प्रभा से इंद्र के आसन को वंâपा देने वाले महोपवास आदि सम्यक् तपों से तथा भव्यजनरूपी कमलों को विकसित करने के लिए सूर्यप्रभा के समान जिनपूजा के द्वारा सद्धर्म का प्रकाश करना मार्गप्रभावना है। समय-समय पर आचार्यों ने…