11. भयवदा महदि महावीरेण.
‘भयवदा महदि महावीरेण…… ’ अमृतर्विषणी टीकापंचाणुव्वदाणि तिण्णि गुणव्वदाणि चत्तारि सिक्खावदाणि वारसविहं गिहत्थधम्मं उवदेसियाणि।’’ अमृतर्विषणी टीका— श्रावक के १२ व्रत अणुव्रत का स्वरूप हिंसा औ झूठ तथा चोरी, मैथुन परिग्रह ये पाँच कहे। इन पापों का स्थूल त्याग, इसका ही अणुव्रत नाम रहे।। जो अणुव्रत को धारण करते, वे देव गती ही पाते हैं। नारक तिर्यंच…