(२) सम्यग्दर्शन के कारण क्षायिकदृष्टिलब्ध्यै या, सामग्रयार्षे प्ररूपिता। सा मे भूयात्त्वरं देव!, युष्मत्पादप्रसादत:।।१।। क्षायिक सम्यग्दर्शन की प्राप्ति के लिये जो सामग्री आर्षग्रंथों में कही गई है। हे भगवन्! आपके चरण कमल के प्रसाद से वह मुझे शीघ्र ही प्राप्त होेवे। मार्ग और मार्ग का फल ये दो प्रकार ही जिनशासन मेें कहे गए हैं।…
नंदीश्वर द्वीप जम्बूद्वीप से आठवाँ द्वीप नंदीश्वर द्वीप है। यह नंदीश्वर द्वीप समुद्र से वेष्टित है। इस द्वीप का मण्डलाकार से विस्तार एक सौ तिरेसठ करोड़ चौरासी लाख योजन है। इस द्वीप में पूर्व दिशा में ठीक बीचों-बीच अंजनगिरि नाम का एक पर्वत है। यह ८४००० योजन विस्तृत और इतना ही ऊँचा समवृत-गोल है तथा…
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) श्री महावीर स्तोत्र -गणिनी ज्ञानमती —स्रग्धरा छन्द— श्रीमान् वीरोऽतिवीर: त्रिभुवनमहित: सौख्यरार्शििजनेन्द्र:। यो जात: कुंडपर्यां भविकमलरवि: सोऽस्ति सिद्धार्थपुत्र:।। आषाढ़े शुक्लषष्ठ्यां सुरनरविनुतो गर्भमायात् जनन्यां। पित्रो: पूजां विदध्यु: किल दिविजगणा: रत्नधारा ववर्षु:।।१।। चैत्रे शुक्ले जिनेश: त्रययुतदशमे पावने जायतेस्म। हृदयै: संगीतवाद्यै: सुरगिरिशिखरे सोऽभिषिक्त: सुराद्यै:।। मार्गे कृष्णे दशम्यां व्रतगुणमणिभिर्भूषितो जातरूप:। ध्याने लीन: कदाचित्…
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) समवसरण स्तोत्र -गणिनी ज्ञानमती —दोहा— चिन्मय चिंतामणि प्रभो, गुण अनंत की खान। समवसरण वैभव सकल, वह लवमात्र समान।।१।। —शंभुछंद— जय जय तीर्थंकर क्षेमंकर, तुम धर्म चक्र के कर्ता हो। जय जय अनंतदर्शन सुज्ञान, सुखवीर्य चतुष्टय भत्र्ता हो।। जय जय अनंत गुण के धारी, प्रभु तुम उपदेश सभा न्यारी।…
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) प्रथम अध्याय (चैत्यभक्ति) का सार चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान् महास्तोत्र भगवान महावीर स्वामी का साक्षात् दर्शन कर श्री गौतमस्वामी भक्ति में गद्गद् हो ‘जयति भगवान्’ शब्द का उच्चारण करके प्रभु के चरणों की वन्दना करते हुय कहते हैं—‘‘हेमाम्भोजप्रचार— विजृंभितौ’’ हे भगवन् ! आपके चरण कमलों के नीचे देवगण…
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान् महास्तोत्रम् (श्री प्रभाचन्द्राचार्य विरचित संस्कृत टीका एवं) हिन्दी—टीका सहित श्रीगौतमादिपदमद्भुतपुण्यबन्ध-मुद्द्योतिताखिलममोहमघप्रणाशम्। वक्ष्ये जिनेश्वरमहं प्रणिपत्य तथ्यम् निर्वाणकारणमशेषजगद्धितार्थम्१।। सत्य और मुक्तिप्राप्ति के लिए हेतु तथा त्रैलोक्य का हित करने के लिए प्रयोजनभूत जिनेश्वर को मैं नमस्कार करके अद्भुत पुण्यबन्धकारक संपूर्ण विषयों को बतलाने वाला पापनाशक श्री गौतमादि…
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) नवदेवता स्तोत्र -गणिनी ज्ञानमती —दोहा— विश्ववंद्य नवदेवता, नवलब्धी दातार। नमूँ नमूँ नित भक्ति से, भरूँ सुगुण भंडार।।१।। —शंभु छंद— जय जय अर्हंत देव जिनवर, जय जय छ्यालिस गुण के धारी। जय समवसरण वैभव श्रीधर, जय जय अनंत गुण के धारी।। जय जय जिनवर केवलज्ञानी, गणधर अनगार केवली सब।…
चैत्यभक्ति अपरनाम जयति भगवान महास्तोत्र (अध्याय १) चैत्यवंदनाष्टक (गणिनी ज्ञानमती विरचित) त्रिभुवन के जितने चैत्यालय, अकृत्रिम उनको नित वंदूं। भव भव के संचित पाप पुंज, उन सबको इक क्षण में खंडूं।। असुरों के चौंसठ लाख नागसुर, के चौरासी लाख कहे। वायुसुर के छ्यानवे लाख सुपरण के बाहत्तर लक्ष कहे।।१।। विद्युत् अग्नी स्तनित उदधि, दिक द्वीपकुमार…