10. सम्यग्दृष्टी यदि जिनशास्त्र का एक पद है
सम्यग्दृष्टी यदि जिनशास्त्र का एक पद है एक अक्षर का भी श्रद्धान नहीं करता है तो मिथ्यादृष्टि हो जाता है शिवकोटि आचार्य की यह भी गाथा ध्यान देने योग्य है पदमक्खरं च एक्वं पि जो ण रोचेदि सुत्तणिद्दिट्ठं। सेसं रोचंतो विहु मिच्छाइट्ठी मुणेयव्वो।।३९।। जो जीव सूत्रनिर्दिष्ट समस्त वाङ्मय का श्रद्धान करता हुआ भी यदि एक पद…