भवदेवब्राह्मणस्य दीक्षा ग्रहणं (भवदेव ब्राह्मण का दीक्षा ग्रहण) संस्कृत भाषा में- अथ कदाचित् विहरन् सन् ससंघ: श्री सौधर्माचार्यवर्य: भावदेवमुनिना सार्धं तत्रैव वद्र्धमानपुरे आगत:। तदानीं विशुद्धबुद्धिधारी भावदेवमुनि: स्वानुजं भावदेवं स्मरतिस्म, असौ नगरे विख्यातो विषयासक्त: एकांतमतानुयायी स्वहितं नाज्ञासीत्। करुणाद्र्रमना: भावदेवमुनि: तस्य संबोधनार्थं गुरोरनुज्ञां गृहीत्वा संघात् निर्गत्य भवदेवगृहे आगत्याहारं लब्धवान्। अनंतरं धर्मामृतै: परितप्र्य स्वस्थानं प्रति आगच्छत्, भवदेवोऽपि विनयेन्…
चतुर्थ अधिकार सुप्रभ बलभद्र एवं पुरुषोत्तम नारायण भगवान अनंतनाथ के समय में सुप्रभ बलभद्र और पुरुषोत्तम नारायण हुए हैं। इनका संक्षिप्त विवरण सुनाया जा रहा है- इसी जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र के पोदनपुर में राजा वसुषेण राज्य करते थे, उनकी पाँच सौ रानियों में नंदा महारानी राजा को अतीव प्रिय थीं। मलयदेश के राजा चण्डशासन राजा…
तीन लोक में सिद्ध जीव कहाँ हैं? अष्टम भूमि – तीन भुवन के मस्तक पर ‘ईषत्प्राग्भार’ नाम की आठवीं पृथ्वी है। यह १ राजु चौड़ी, ७ राजु लम्बी और आठ योजन मोटी है अर्थात् लोक के अन्तपर्यंत है। सिद्ध शिला – इस आठवीं पृथ्वी के मध्य में रजतमयी, श्वेत छत्राकार, मनुष्य-क्षेत्र के समान गोल, पैंतालीस…
महापुराण प्रवचन-७ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। महानुभावों! भगवान ऋषभदेव के दशवें भव पूर्व का प्रकरण चल रहा है कि राजा महाबल के मंत्री स्वयंबुद्ध एक बार सुमेरुपर्वत की वंदना करने गये। वहां वंदना करते हुए सौमनसवन के पूर्व दिशा के चैत्यालय में बैठ गये। अकस्मात् ही पूर्व विदेह से युगमंधर भगवान्…
जो अपने और दूसरों के उपकार के लिए दिया जाता है उसे दान कहते हैं।
आचार्यों ने श्रावकों के देवपूजा , गुरुपास्ति , स्वाध्याय , संयम , तप और दान ये षट् आवश्यक कर्तव्य बताए हैं। उनमें भी आचार्य कुन्दकुन्द ने ‘दाणं पूजा मुक्खो’ दान और पूजा को मुख्य बताया है।
महापुराण प्रवचन-८ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। महानुभावों! भगवान ऋषभदेव के दशवें भवपूर्व राजा महाबल ने स्वयंबुद्ध मंत्री के सम्बोधन से जिनमंदिर में जाकर सल्लेखना ग्रहण कर ली थी और धर्मध्यानपूर्वक उन्होंने उपसर्गे दुर्भिक्षे, जरसि रुजायां च नि:प्रतीकारे। धर्माय तनुविमोचनमाहु:सल्लेखनामार्या:।। अर्थात् उपसर्ग-संकट आ जावे, ऐसा बुढ़ापा आ जावे कि अब शरीर पूर्ण…
महापुराण प्रवचन-०१४ श्रीमते सकलज्ञान, साम्राज्य पदमीयुषे। धर्मचक्रभृते भत्र्रे, नम: संसारभीमुषे।। भव्यात्माओं! महापुराण ग्रंथ के अनुसार राजा वङ्काजंघ ने जंगल में मुनियों से अपने और रानी श्रीमती के पूर्वभव पूछने के बाद अपने साथ के मंत्रियों और वहाँ खड़े चारों पशुओं के भी पूर्वभव पूछे तो वे सर्वप्रथम मतिवर के पूर्वभव बताने लगे- हे राजन्! इसी…
शास्त्रसार समुच्चय (श्रीमाघनन्दियोगीन्द्र-विरचित:) श्रीमन्नम्रामरस्तोमं प्राप्तानन्तचतुष्टयम्। नत्वा जिनाधिपं वक्ष्ये शास्त्रसारसमुच्चयम्।।१।। सूत्रद्वयं कर्णाटवृत्तावेव।। अथ त्रिविध: कालो द्विविध: षड्विधो वा।।१।। दशविधा: कल्पद्रुमा:।।२।। चतुर्दश कुलज्र्रा इति।।३।। षोडशभावना:।।४।। चतुर्विंशतितीर्थंकरा:।।५।। चतुिंस्त्रशदतिशया:।।६।। पंच महाकल्याणानि।।७।। घातिचतुष्टयम्।।८।। अष्टादश दोषा:।।९।। समवसरणैकादशभूमय:।।१०।। द्वादशगणा:।।११।। अष्टमहाप्रातिहार्याणि।।१२।। अनन्तचतुष्टयमिति।।१३।। द्वादशचक्रवर्तिन:।।१४।। सप्ताङ्गानि।।१५।। चतुर्दशरत्नानि।।१६।। नवनिधय:।।१७।। दशाङ्गभोगा इति।।१८।। नवबलदेववासुदेवनारदाश्चेति।।१९।। एकादशरुद्रा:।।२०।। ।।इति शास्त्रसारसमुच्चये प्रथमोऽध्याय:।।१।। अथ त्रिविधो लोक:।।१।। सप्तनरका:।।२।। एकोनपंचाशत्पटलानि।।३।। इन्द्रकाणि च।।४।। चतुरुत्तर-षट्च्छतनवसहस्रं श्रेणिबद्धानि।।५।। सप्तचत्वारिंशदुत्तरत्रिंशताधिकनवतिसहस्रालं-कृतत्र्यशीतिलक्षं…
चतुर्थ अधिकार अचल बलभद्र एवं द्विपृष्ठ नारायण श्री वासुपूज्य भगवान के तीर्थ में द्विपृष्ठ नारायण, अचल बलभद्र एवं तारक नाम के प्रतिनारायण हुए हैं। नारायण का प्रतिनारायण प्रतिद्वन्दी-शत्रु होता है। ये नारायण आदि अद्र्धचक्री कहलाते हैं क्योंकि ये तीन खण्ड-एक आर्यखण्ड और दो म्लेच्छखण्ड पर विजय प्राप्त करने वाले होते हैं। प्रतिनारायण की आयुधशाला में…