एक भव में यदि जीव को समाधिमरण की प्राप्ति हो जावे तो सात या आठ भव में वह उत्कृष्ट निर्वाणपद को प्राप्त कर लेता है। मरण के ये सत्रह भेद हैं। अथवा मध्यम रूप से मरण के पाँच भेद हैं-पंडित पंडित, पंडित, बाल पंडित, बाल और बाल बाल|
इनमें पंडितमरण मुनियों को होता है
चौंतीस अतिशय एवं आठ प्रातिहार्य (तिलोयपण्णत्ति ग्रंथ से) चउरंगुलंतराले उवरिं सिंहासणाणि अरहंता। चेट्ठंति गयणमग्गे लोयालोयप्पयासमत्तंडातिलोयपण्णत्ति-चतुर्थ महाधिकार पृ. २६२ से २६५ तक।।। ८९५।। णिस्सेदत्तं णिम्मलगत्तत्तं दुद्धधवलरुहिरत्तं। आदिमसंहडणत्तं समचउरस्संगसंठाणं।।८९६।। अणुवमरूवत्तं णवचंपयवरसुरहिगंधधारित्तं। अट्ठुत्तरवरलक्खणसहस्सधरणं अणंतबलविरियं।। ८९७।। मिदहिदमधुरालाओ साभावियअदिसयं च दसभेदं। एदं तित्थयराणं जम्मग्गहणादिउप्पण्णं।। ८९८।। जोयणसदमज्जादं सुभिक्खदा चउदिसासु णियराणा। णहगमणाणमहिंसा भोयणउवसग्गपरिहीणा।।८९९।। सव्वाहिमुहट्ठियत्तं अच्छायत्तं अपम्हपंदित्तं। विज्जाणं ईसत्तं समणहरोमत्तणं सजीवम्हि।। ९००।। अट्ठरसमहाभासा…
ज्ञानामृत (भाग – २) प्रश्नोत्तरी प्रश्न १ :-सर्वावधि ज्ञान किनको होता है ?(१) निश्चल ध्यान में स्थित मुनि के (२) भावलिंगी व वृद्धिंगत चारित्र वाले मुनि के(३) ऋद्धिधारी मुनियों के (४) इनमें से किसी के नहीं होता हैउत्तर:-भावलिंगी व वृद्धिंगत चारित्र वाले मुनि के प्रश्न २ :-जम्बूद्वीप में वृषभाचल पर्वत कितने हैं ? (१) ३२…
ज्ञानामृत (भाग – ३) प्रश्नोत्तरी प्रश्न १ :- बारह अंगों एवं चौदह पूर्व से समन्वित जिनवाणी माता के पैरों को क्या बताया है ?(१) उपासकाध्ययनांग (२) सूत्रकृतांग(३) विपाकसूत्र अंग (४) व्याख्याप्रज्ञप्तिउत्तर:- विपाकसूत्र अंग प्रश्न २:- राजा श्रीषेण का जीव भोगभूमि से चयकर सौधर्म स्वर्ग के श्रीप्रभ विमान में…………नाम का देव हुआ।(१) श्रीकांत (२) श्रीप्रभ(३) श्रीधर(४)…
ज्ञानामृत (भाग – १) प्रश्नोत्तरी प्रश्न १ :- सिद्ध और अरिहंतों में क्या भेद है ? (१) आठ घातिया कर्मों को नष्ट करे तो अरहंत, चार कर्म नष्ट करने वाले सिद्ध होते हैं।(२) अरिहंत भगवान आठ कर्मों से सहित हैं और सिद्ध आठ कर्म रहित हैं। (३) आठ कर्मों को नष्ट करने वाले सिद्ध और…
नव पदार्थ श्री गौतमस्वामी विरचित पाक्षिक प्रतिक्रमण में— ‘से अभिमद जीवाजीव-उवलद्धपुण्णपाव-आसवसंवरणिज्जर-बंधमोक्खमहिकुसले।।। क्रियाकलाप पृ. १०७, मुनिचर्या पृ. २९२। जीव अजीव पुण्य पाप आस्रव संवर निर्जरा बंध मोक्ष। ये क्रम है। यही क्रम षट्खण्डागम धवला टीका पुस्तक १३ में है। ‘‘जीवाजीव- पुण्ण-पाव-आसव-संवर-णिज्जरा-बंध-मोक्खेहि।णवहिं पयत्थेहि वदिरित्तमण्णं ण किं पि अत्थि, अणुवलंभादो।। षट्खण्डागम (धवला) पृ. १३, पृ. ६४।’ अर्थात् जीव,…
श्री वीरसागराष्टकम् यस्य प्रसन्नमुखमण्डलमीक्षमाणा। भव्या भवन्ति सततं भवतो विभीता:। त्यक्त्वा परिग्रहचयं मुनयो भवन्त:। कुर्वन्ति दुर्लभतरं स्वहितं समन्तात्।।१।। यस्यास्यनिर्गतवचोऽमृतपानतृप्तो विज्ञो न जातु रमते सुरभूमिमध्ये। यस्यांघ्रियुग्ममभिनम्य नरा: कदाचिन्। नैवानमन्ति कुगुरुन् पतितान् भवाब्धौ।।२।। यदूदीक्षिता मुनिवरा: सुदृढां व्रतानां। संपालने विशदवृत्त युता लसन्ति। आर्याश्च वृत्तपरिपालनपूर्णदक्षा:। सन्त्यत्र गौरवयुता: सुनुता मर्हिद्ध।।३।। यत्सन्निधौ भुवि बभूव महातपस्वी। श्री चन्द्रसागर मुनि: प्रवर:…