14. द्वादशानुप्रेक्षा
[[श्रेणी:जिनागम_रहस्य]] == द्वादशानुप्रेक्षा श्री कुन्दकुन्ददेव ने ‘द्वादशानुप्रेक्षा’ नाम से स्वतन्त्र ग्रंथ लिखा, उसमें ९१ गाथायें हैं। इन्हीं आचार्य द्वारा विरचित मूलाचार में भी यही क्रम रखा है। इसमें द्वादशानुप्रेक्षा नाम से एक अधिकार लिया है इन ग्रन्थों में इसी क्रम से वर्णन है एवं टीकाकारों ने भी यही क्रम लिया है उनका क्रम देखिए— कुन्दकुन्दभारती…