प्रत्युपकार!
प्रत्युपकार प्रथम दृश्य मंगल-प्रार्थना स्थान—रंगभूमि। समय—प्रात:। (सब मिलकर) जिनदेव का वंदन पाप को नाशे, पुण्यरतन बरसाये। जिनदेव का वन्दन।। सर्वप्रथम मैं करूँ वंदना अरहंतों की, सिद्धों की। आचार्यों की, उपाध्याय, गुरु, सर्वसाधु गुणवंतों की।। ये मंगलकारी लोक में उत्तम शरणभूत कहलायें। जिनदेव का वन्दन।। सरस्वती की करूँ वंदना, मन में आश लगा के। जिनवचनामृत के…