आचार्यश्री वादीभिंसह
आचार्य श्री वादीभसिंह अनन्तकाल से जितनी भी मुक्तात्माएं हुयीं, उनमें स्वभावत: भेद नहीं है। जैसे खान से जितना सोना निकाला उसके हजारों आभूषण बने, उन आभूक्षणों के आकार में तो भेद है, कोई अंगूठी है तो कोई माला है पर खास सोने में कोई फर्क नहीं होता है, उसी प्रकार जितनी मुक्तात्मायें हैं उनके जीवन,...