भजन
भजन रत्नमती माताजी को हम नित प्रति शीश झुकाते हैं। उनके मंगल आदर्शों का किंचित् दर्श कराते हैं।।टेक.।। नारी शील कहा जग में, आभूषण अवनीतल में। सर्व गुणों की छाया है, कैसी अनुपम माया है।। इसीलिए इस नारी ने, तीर्थंकर से पुत्र जने। भारत जिससे धन्य हुआ, सर्वकला सम्पन्न हुआ।। यहीं वृषभ तीर्थंकर ने, आदिब्रह्म…