जान बची तो लाखों पाय
जान बची तो लाखों पाये (भक्तामर के तृतीय व चतुर्थ काव्य से सम्बन्धित कथा) ‘‘हे स्वामिन्! नमोऽस्तु, नमोऽस्तु; नमोऽस्तु, अगच्छ, अगच्छ, अगच्छ; अन्न-जल शुद्ध है; स्वामिन् आईये!’’… की मधुर स्वर लहरी एक बार पुनः वायुमंडल में थिरक उठी! नव यौवन दम्पत्ति के सु-मधुर कण्ठों से एक साथ निकला हुआ यह स्वर केवल जड़ शब्दों के…