संस्कार (१) अरविन्द महाराज एकदम आश्चर्यान्वित होेते हुए बोले-‘ऐ!! मंत्री जी क्या-क्या, आपने क्या कहा? क्या मुझसे कोई नाराजगी का प्रसंग आया है?’ ‘नहीं-नहीं महाराज! आप अन्यथा न सोचें। प्रभो! आपके पिता और पितामह आदि बुजुर्गों ने तथा मेरे माता-पिता, पितामह आदि बुजुर्गों ने जिस आश्रय को अंत में स्वीकार किया है और जो कि…
बुजुर्ग हमारी सम्पत्ति हैं, बोझ नहीं दर्द क्या होते हैं, ये फासले बता सकते हैं, गिरते क्यों हैं, ये आँखों से आंसू बता सकते हैं।। मनुष्य के जीवन में माता—पिता का स्थान सर्वोपरि और सर्वोच्च है। संसार में माता—पिता का ही आशीष अमृत का वह स्रोत है, जिससे जीवन गतिमान होता है। माता—पिता के मन…
जड़मति होत सुजान (काव्य अठारह से सम्बन्धित कथा) आधुनिक समय में पैतृक व्यवसाय बहुत कम लोग अपनाते हुए देखे जाते हैं!…आज कोई डाक्टर का पुत्र पैतृक बल पर ‘‘स्टैथिसकोप’’ रखकर रोगियों पर शासन जमा बैठे तो फिर कल्याण ही कल्याण है।… न मर्ज रहे, न मरीज। अस्तु- उपरोक्त शीर्षक की कहानी का आधुनिक युग से…
भोगभूमिज आर्य किसी समय वज्रजंघ आर्य अपनी स्त्री के साथ कल्पवृक्ष की शोभा देखते हुए बैठे थे कि वहाँ पर आकाशमार्ग से दो चारण-ऋद्धिधारी मुनि उतरे। वज्रजंघ के जीव आर्य ने शीघ्र ही पत्नी सहित खड़े होकर उनका विनय करके नमस्कार किया। उस समय उन दोनों दम्पत्ति के नेत्रों से हर्षाश्रु निकल रहे थे। दोनों…
जंगल की आग (काव्य चालीस से सम्बन्धित कथा) देखते ही देखते करोड़ों की संपत्ति स्वाहा हो गई। प्रचण्ड अग्नि की लपलपाती हुई जिह्वा ने क्षण मात्र में लक्ष्मीधर जी की समस्त विभूति राख में परिणत कर दी। डेरे में जितने भी तम्बू लगे थे-सब के सब अग्नि देवता की भेंट चढ़ गये।माल-असबाव से लदी हुई…
पैसों का मोह एक छोटे से बच्चे ने अपने पिता के पास जाकर कहा— ‘ मुझे दो रूपये दो।’ क्या करोगे? ‘पिता ने पूछा।’ ‘लॉटरी का टिकट खरीदूँगा।’ बच्चे ने जवाब दिया ‘लॉटरी निकल आई तो मुझे कितना दोगे ? पिता ने सहजभाव से पूछा। ‘ आपके दो रूपये वापस कर दूँगा।’ बच्चे ने पूरी…
तौलकर बोलें दूसरों को जो सुनाने हैं, चला सुन लिया है क्या उसे खुद गौर से। हर मनुष्य किसी न किसी धर्म या मत का अनुयायी होता है। बचपन से ही वह अपने धर्म के बारे में सुनने लग जाता है। उसे यह पाठ अच्छी तरह पढ़ा दिया जाता है कि उसका धर्म दूसरों के…
हृदय परिवर्तन महर्षि वात्स्यायन के अनेक शिष्य थे । उन्हें इस बात का गौरव था कि मेरे शिष्य बड़े यशस्वी हैं, बड़े प्रतिभाशाली और चरित्रवान हैं। उनके ही एक शिष्य देवदत्त ने एक बार चोरी कर ली। महर्षि ने जब यह बात सुनी तो तत्काल चल पड़े देवदत्त को समझाने के लिए। उस समय अंधेरा…
‘सोचना ही है तो अच्छा सोचो’ एक बार नारद जी किसी व्यक्ति को लेकर वैकुण्ठ की ओर जा रहे थे। मार्ग में एक कल्पवृक्ष के नीचे उसे विश्राम करने के लिए कहकर वे कुछ समय के लिए विष्णु के पास चले गये। कल्प —वृक्ष तो, जो मांगों सो देता है। वहाँ बैठे उस व्यक्ति ने…