स्वेदराहित्य!
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वेदराहित्य – Svedaraahitya. One of the 10 birth excellences of Lord Arihant (to be devoid of sweat). अर्हत भगवान के जन्म के 10 अतिशयो मे प्रथम अतिषय पसीना नही आना।
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वेदराहित्य – Svedaraahitya. One of the 10 birth excellences of Lord Arihant (to be devoid of sweat). अर्हत भगवान के जन्म के 10 अतिशयो मे प्रथम अतिषय पसीना नही आना।
[[श्रेणी: शब्दकोष]] परतंत्रवाद: Doctrine of dependency on others.दूसरों पर निर्भर रहने का सिद्वांत, आत्मा का दुख सुख भोगने में काल, स्वभाव, नियति आदि पर निर्भर रहना ।
ई The fourth vowel of the Devanagari syllabary. देवनागरी वर्णमाला का चतुर्थ स्वर।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वाभाविक दुःख – Svaabhaavika Dikha. Natural pain or troubles (according to Karmic nature). दुःख के 4 भेदो मे एक भेद। क्षुधादि से उत्पन्न होने वाले दुख स्वाभाविक दुःख है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] रजतप्रभ – कुंडलवर पर्वत के दक्षिण दिषा का प्रथम कूट Rajata Prabha-Name of the first summit of southern Kundalvar mountain
[[श्रेणी: शब्दकोष]]स्वस्थान सन्निकर्ष – Svasthaana Sannikarsa. Relativity of karmas with matter, region, time etc. सन्निकर्ष के दो भेदो मे एक ंभेद। किसी विवक्षित एक कर्म का जो द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव विषयक सन्निकर्ष होता है वह स्वस्थान सन्निकर्ष कहलाता है।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सांतर सिद्व – Saantara Siddha. Beings to be salvated from Santar Gatri. अंतर-विच्छेद सहित होने वाले सिद्व।
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सत् – Sat. Truth, Reality, Existence, Essence. पदार्थों का स्वतः सिद्ध अस्तित्व ” या उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य से युक्त द्रव्य ” सता, सत्व, सामान्य, द्रव्य, वस्तु, अर्थ, विधि, सत् ये सर्व एकार्थवाची शब्द हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] प्रतिष्ठाचार्य- जिनबिम्बादिक की पंचकल्याणक प्रतिष्ठा कराने वाला जिनधर्म का दृढ श्रद्धानी, सदाचारी, शास्त्रज्ञ, निश्चय व्यवहार का ज्ञाता, देष कुल जाति से शुद्ध त्यागी या गृहस्थ श्रावक। pratisthacharya – the cheif one, the installator in the consecration celebration of ido installation
[[श्रेणी:शब्दकोष]] योगी – जिसने ष्वास को जीत लिया।जो नेत्र टिमकर रहित है, जो काय के समस्त व्यापार से रहित है, निसन्देह वह योगी है। Yogi-Meditator, Who is deeply engrossed into supreme knowledge