अनिष्टसंयोगज!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] अनिष्टसंयोगज-विष,कांटा,शत्रु आदि अप्रिय वस्तु का संयोग होने पर उससे पीछा छुड़ाने के लिये बार-बार विचार अनिष्टसंयोगज आर्त्तध्यान है”
[[श्रेणी:शब्दकोष]] अनिष्टसंयोगज-विष,कांटा,शत्रु आदि अप्रिय वस्तु का संयोग होने पर उससे पीछा छुड़ाने के लिये बार-बार विचार अनिष्टसंयोगज आर्त्तध्यान है”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भूमिसंस्तर – Bhumisamstara. A suitable land base related to the Samadhi of a Jaina saint. संस्तर के ४ भेदों में एक भेद; जो जमीन मुदु नहीं है, जो छिद्र रहित, प्राणी रहित, प्रकाश युक्त, हो एवं क्षपक के देहप्रमाण और गुप्त हो “
आलाप पद्धति A book written by ‘Acharya Devasen’. आचार्य देवसेन (वि.990-1012) द्वारा संस्कृत गद्य में रचित प्रमाण नय विषयक सूत्र ग्रंथ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
एकप्रदेशी Matter having single space-point. काल द्रव्य एकाप्रदेशी कहलाता है।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी :शब्दकोष]] मृषापाप–Mrashapaap. To speak a lie, a sin. 5 पापो में दूसरा पाप–असत्य भाषण या झूठ बोलना”
[[श्रेणी : शब्दकोष]] भावयोग – Bhavayoga. Subjective (psychical) vibration. मन वचन काय से संयुक्त संसारी जीव के अंगोपांग व शरीर नाम कर्म के उदय से जीव की वह शक्ति जो कर्म व नोकर्म को ग्रहण करती है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] संवेग – Sanvega. Mental agitation, Instinct, To have fear with the sufferings of wordly life. मन में उठने वाली भावना, अन्तःप्रेरणा, सम्यग्दर्शन के चार गुणों में से एक-संसार के दुःखों से नित्य डरते रहना अथवा पंचपरिवर्तन रूप संसार से भय उत्पन्न होना “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] प्रकृति निरन्तर – Prakrti Nirantara. Karmic nature with continuous binding. कर्म प्रक्रतियां जो अंतर्मुहूर्त काल तक निरंतररूप से बंधती हैं वह निरंतर बंधी प्रक्रतियां कहलाती हैं “
[[श्रेणी : शब्दकोष]] विभाव – Vibhava. Passionate feelings ( i.e feelings contrary to real nature ) due to the fruition of Karmas. कर्मों के उदय से होने वाले जीव के रागादि भावों को विभाव कहते हैं “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सचित्त द्रव्य शल्य – Sachitta Dravya Shalya. A type of material sting; servants etc. animate objects. द्रव्य शल्य के तीन भेदों में एक भेद; दास आदि सचित्त द्रव्य शल्य है “