पंच भ्रष्ट मुनि!
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंच भ्रष्ट मुनि – Pancha Bhrashta Muni. Saint with five types of faults. पार्श्वस्थ, कुशील, संसक्त (आहार का लोभी), अपगत (ज्ञान रहित), मृगचारी (स्वछन्द अर्थात् अनर्गल विहारी) मुनि “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] पंच भ्रष्ट मुनि – Pancha Bhrashta Muni. Saint with five types of faults. पार्श्वस्थ, कुशील, संसक्त (आहार का लोभी), अपगत (ज्ञान रहित), मृगचारी (स्वछन्द अर्थात् अनर्गल विहारी) मुनि “
आराधना सार A book written by ‘Acharya Devsen’. आचार्य देवसेन (वि.990-1012) द्वारा रचित एक चतुर्विध आराधना विषयक ग्रन्थ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वांछा – Vaanchaa.: Desire,Longing, a type of passion. इच्छा ,अभिलाषा “इसे ही परिग्रह कहा गया है “
उषित अन्न Stale food, Not edible. बासी व अमर्यादिक भोजन, अग्नि पर पकाये हुए अथवा गर्म घी में पकाये हुए पदार्थ।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लब्ध्यक्षर ज्ञान – पर्याय ज्ञान या सबसे जघन्य श्रुतज्ञान।इसे निरावरण ज्ञान भी कहते है यह सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यप्र्याप्तक जीव के उत्पन्न होने के पहले समय में होता है। Labdhyaksara Jnana-The lowest level of knowledge
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वसुनंदि – Vasunandi.: Name of different Acharyas of Nandi group. नंदिसंघ देशीयगण के एक आचार्य ,जिनका अपरनाम जयसेन था “श्रावकाचार ,प्रतिष्ठासार संग्रह ,मूलाचार वृत्ति, आप्तमीमांसा वृत्ति ,जिनशतक,वस्तु आदि के रचयिता ” समय –ई.स. 1068-1118 “इस नाम के और भी कई आचार्य हुए हैं “
उभयशुद्धि सम्यग्ज्ञान का एक अंग व्यंजन और उसके वाच्य (अर्थ) अभिप्राय की शुद्धि उभयशुद्धि है। अपरनाम तदुभयशुद्धि।[[श्रेणी:शब्दकोष]]
[[श्रेणी:शब्दकोष]] लब्धिसम्पन्न ऋशि – सम्यग्दर्षन प्राप्ति का एक निमित लब्धिसम्पन्न ऋशियो का दर्षन। Labdhisampanna Rsi-Super saints, visiting of whom is a cause of right faith
[[श्रेणी:शब्दकोष]] वशवर्तिता – Vashavartitaa.: An example of power of Karmas, fruition of Karmas causing developments of sense organs. कर्म की बलवत्ता का एक उदाहरण; नाम कर्मोदय की वशवर्तिता से इन्द्रियां उत्पन्न होती है “
[[श्रेणी:शब्दकोष]] सकलादेश – Sakalaadesha. Other name of Sayaggyan (right knowledge). प्रमाण अर्थात् सम्यग्ज्ञान को सकलादेश कहते हैं “