तीव्रकषायी :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == तीव्रकषायी : == आत्मप्रशंसनकरणं, पूज्येषु अपि दोषग्रहणशीलत्वम्। वैरधारणं च सुचिरं, तीव्रकषायाणां लिंगानि।। —समणसुत्त : ६०० अपनी प्रशंसा करना, पूज्य पुरुषों में भी दोष निकालने का स्वभाव होना, दीर्घकाल तक वैर की गाँठ को बांधे रखना—ये तीव्रकषाय वाले जीवों के लक्षण हैं।