वीतरागी :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == वीतरागी : == कामानुगृद्धिप्रभवं खलु दु:खं, सर्वस्व लोकस्य सदेवकस्य। यत् कायिकं मानसिकं च किंचित् , तस्यान्तकं गच्छति वीतराग:।। —समणसुत्त : ७६ सब जीवों का, और तो क्या देवताओं का भी जो कुछ कायिक और मानसिक दु:ख है, वह काम—भोगों की सतत अभिलाषा से उत्पन्न होता है। वीतरागी उस…