साधक :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == साधक : == बाह्यमूघ्र्वमादाय, नावमाकांक्षेत् कदाचित् अपि। पूर्वकर्मक्षयार्थाय, इमं देहं समुद्धरेत्।। —समणसुत्त : ५६८ ऊध्र्व अर्थात् मुक्ति का लक्ष्य रखने वाला साधक कभी भी बाह्य विषयों की आकांक्षा न रखे। पूर्वकर्मों का क्षय करने के लिए ही इस शरीर को धारण करे। चरेत्पदानि परिशंकमान:, यत्कििंचत्पाशमिह मन्यमान:। लाभान्तरे जीवितं…