स्वाध्याय :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == स्वाध्याय : == पूजादिषु निरपेक्ष:, जिनशास्त्रं य: पठति भक्त्या। कर्ममलशोधनार्थं, श्रुतलाभ: सुखकर: तस्य।। —समणसुत्त : ४७६ आदर—सत्कार की अपेक्षा से रहित होकर जो कर्मरूपी मल को धोने के लिए भक्तिपूर्वक जिनशास्त्रों को पढ़ता है, उसका श्रुत—लाभ स्व—पर सुखकारी होता है।