मुमुक्षु :!
[[ श्रेणी:जैन_सूक्ति_भण्डार ]] [[ श्रेणी:शब्दकोष ]] == मुमुक्षु : == मिच्छत्तासवदारं रुंभइ सम्मत्तदिढकवाडेण। हिंसादिदुवाराणि वि, दिढवयफलिहेहिं रुंभति।। —जयधवला : १-१०-५५ मुमुक्षु जीव सम्यक्त्व रूपी दृढ़ कपाटों से मिथ्यात्व रूपी आस्रव द्वार को रोकता है तथा दृढ़ व्रत रूपी कपाटों से हिंसा आदि द्वारों को रोकता है।