सोलह कारण पर्व श्रेयोमार्गानभिज्ञानिह भवगहने जाज्ज्वलद्दु:खदाव- स्कन्धे चंक्रम्यमाणानतिचकितमिमानुद्धरेर्यं वराकान्।। इत्यारोहत्परानुग्रहरसविलसद्भावनोपात्तपुण्यप्रव्र- न्तैरेव वाक्यै: शिवपथमुचितान् शास्ति योऽर्हन् स नोऽव्यात्।।१।। अर्थ- इस संसाररूपी भीषण वन में दु:खरूपी दावानल अग्नि अतिशय रूप से जल रही है। जिसमें श्रेयोमार्ग-अपने हित के मार्ग से अनभिज्ञ हुए ये बेचारे प्राणी झुलसते हुए अत्यंत भयभीत होकर इधर-उधर भटक रहे हैं। ‘‘मैं इन…
सोलहकारण पर्व प्रतिवर्ष सोलहकारण पर्व भाद्रपद कृष्णा प्रतिपदा से प्रारम्भ होकर आश्विन कृष्णा प्रतिपदा तक मनाया जाता है। सामान्यत: यह पर्व ३१ दिन का होता है। इस पर्व में सोलहकारण भावनाओं का चिन्तन किया जाता है। शास्त्रों में १६ भावनायें कही गई हैं। इन भावनाओं से तीर्थंकर नामकर्म प्रकृति का बंध होता है। इस कर्मप्रकृति…
क्षमा वीरस्य भूषणं —प्रो. डॉ. विमला जैन ‘विमल’, फिरोजाबाद उत्तम क्षमा की अमिथ धार से, क्रोध ताप मिट जाता है, तब क्रोध विभाव विलीन हुआ, शुद्धात्म कमल खिल जाता है। इस कोप कषाय की अग्नि से, द्वीपायन मुनि तप तेज गया, द्वारिका संग जन—धन नाशे, इहलोक और परलोक गया। संयम—तप क्षमा की ज्योति है, ज्योतिर्मय…
दशधर्म दशधर्म पुस्तक भी परमपूज्य चारित्रश्रमणी आर्यिका श्री अभयमती माताजी की एक मौलिक कृति है। दशलक्षण महापर्व में दस दिन तक जिनधर्मों की उपासना की जाती है उनका वर्णन इस कृति में किया गया है। उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, सत्य, शौच, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य एवं ब्रह्मचर्य ये दशधर्म हैं। पूज्य माताजी ने इस पुस्तक…
दस धर्म महत्त्व सिद्धिप्रासादनि:श्रेणी-पंक्तिवत् भव्यदेहिनाम्। दशलक्षणधर्मोऽयं, नित्यं चित्तं पुनातु न:।।१।। भव्य जीवों के सिद्धिमहल पर चढ़ने के लिये सीढ़ियों की पंक्ति के समान यह दशलक्षणमय धर्म नित्य ही हम लोगों के चित्त को पवित्र करे। उत्तम क्षमा धर्म सर्वं यो सहते नित्यं क्षमादेवीमुपास्य स:। पाश्र्ववत् जायते जित्वोपसर्गांश्च परीषहान्।।१।। शांति:किं स्यात्व्रुधाकिं नु नश्येत् वैरं हि…
मार्दव धर्म-एक रूपक (विद्या ददाति विनयं) लेखिका — आर्यिका चन्दनामती माताजी मंच पर सूत्रधार प्रवेश करके कहता है— प्यारे भाईयों एवं बहनों! मार्दव धर्म मृदुता से उत्पन्न होता है । मान कषाय के साथ इस धर्म की पूर्ण शत्रुता है । ज्यों-ज्यों आपके हृदय से अहंकार नष्ट होता जाएगा त्यों-त्यों इस गुण का विकास प्रारम्भ…
मुनियों के दश धर्म समिति में तत्पर मुनि प्रमाद का परिहार करने के लिए दश धर्म का पालन करते हैं। उनके नाम- उत्तमक्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिंचन्य और ब्रह्मचर्य ये दश धर्म हैं। उत्तमक्षमा- शरीर की स्थिति के कारण आहार के लिए जाते हुए मुनि को दुष्टजन गाली देवें, उपहास करें,…