14. महु—मंस—मज्ज—जूआ
‘महु—मंस—मज्ज—जूआ… ’ अमृतर्विषणी टीका ‘‘महु—मंस—मज्ज—जूआ, वेसादिविवज्जणासीलो। पंचाणुव्वयजुत्तो, सत्तेिंह सिक्खावएिंह संपुण्णो।।’’ श्रावक के अष्टमूलगुण एवं सप्तव्यसन त्याग का वर्णन— अर्थ—मधु, मांस, मद्य, जुआ और वेश्या आदि व्यसन, इनको त्याग करने वाला, पाँचों अणुव्रतों से युक्त तथा सात शिक्षाव्रतों से परिपूर्ण गृहस्थ होता है। मधु, मांस और मद्य का त्याग करना। दर्शन प्रतिमा के लक्षण में…